पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने शहबाज शरीफ सरकार और चुनाव आयोग की ‘धांधली’ के खिलाफ बड़ा फैसला सुनाया।
उच्चतम न्यायालय ने 8 फरवरी को हुए चुनाव के बाद आयोग के कार्यों पर अंसतोष जताया और सुरक्षित सीट के संबंध में इमरान खान की पार्टी के हक में फैसले को लागू करने का आदेश दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के प्रति नाराजगी जताई और कहा कि आयोग के इस कदम की कड़ी से कड़ी निंदा की जानी चाहिए।
अगर पाकिस्तान सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का अक्षरश: पालन किया जाता है तो इमरान की पार्टी पीटीआई पाकिस्तान नेशनल असेंबली में सबसे बड़ी पार्टी बन सकती है। सुरक्षित सीटों के जुड़ने से पीटीआई की ताकत और बढ़ जाएगी।
शनिवार को पाकिस्तान की शीर्ष अदालत का यह आदेश प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए करारा झटका साबित हुआ।
इससे तहरीक-ए-इंसाफ(पीटीआई) संसद के दोनों सदनों में सबसे बड़ी पार्टी बन जाएगी।
सत्तारूढ़ पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार ने 15 जुलाई को पीटीआई को सुरक्षित सीट आवंटित करने के फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में समीक्षा याचिका दायर की थी।
इससे पहले, शीर्ष अदालत की 13 सदस्यीय पीठ ने 12 जुलाई को आठ-पांच के बहुमत से फैसला सुनाया था कि पीटीआई नेशनल असेंबली और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं और अल्पसंख्यकों के लिए सुरक्षित सीट के लिए पात्र है।
अदालत ने यह भी घोषित किया कि पीटीआई को संसदीय दल माना जाए। गौरतलब है कि पीटीआई चीफ और पूर्व पीएम 71 वर्षीय इमरान खान इस वक्त 200 से अधिक मामलों का सामना कर रहे हैं और उनमे से कई में उन्हें दोषी भी ठहराया जा चुका है। इस वक्त उन्हें रावलपिंडी की आदियाला जेल में बंद करके रखा गया है।
इमरान खान ने पहले ही दावा किया था कि 8 फरवरी के आम चुनाव में जमकर धांधली की गई। उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वियों पीएमएल-एन और पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (पीपीपी) को “जनादेश चोर” कहा था।
चुनाव में, पीएमएल-एन और पीपीपी दोनों ने व्यक्तिगत रूप से इमरान खान की पीटीआई द्वारा समर्थित निर्दलीय उम्मीदवारों द्वारा जीती गई 92 से कम सीटें जीतीं। दोनों पार्टियों ने चुनाव के बाद गठबंधन किया और शहबाज की ताजपोशी हुई।
समझौते के तहत पीएमएल-एन को प्रधानमंत्री पद और पंजाब प्रांत का मुख्यमंत्री पद मिला, जबकि पीपीपी को राष्ट्रपति पद और सिंध प्रांत में मुख्यमंत्री पद मिला।
पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट के फैसले से क्या फर्क पड़ेगा
यदि अब पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आरक्षित सीटें पीटीआई को आवंटित की जाती हैं, तो इससे पीएमएल-एन-पीपीपी की स्थिति खराब हो जाएगी।
इससे पहले, 12 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में आए 8-5 बहुमत के फैसले से पहले पाकिस्तान चुनाव आयोग (ईसीपी) ने अदालत को बताया था कि नेशनल असेंबली के 80 सदस्यों में से 39 ने स्वीकारा कि वे पीटीआई से जुड़े हुए थे।
जबकि 41 ने निर्दलीय सदस्यों के रूप में चुनाव लड़ा। 15 दिनों के भीतर आयोग के समक्ष उन्होंने यह स्पष्ट किया कि उन सभी ने 8 फरवरी का चुनाव एक विशेष राजनीतिक दल के उम्मीदवार के रूप में लड़ा था।
हालांकि ईसीपी की दलीलों को सुप्रीम कोर्ट ने नकार दिया। अदालत ने टिप्पणी की, “इसका समर्थन नहीं किया जा सकता। यहां तक कि कानून के प्राथमिक सिद्धांतों के अनुप्रयोग पर भी चुनाव आयोग के कार्य गलत है।” शीर्ष अदालत ने कहा, ”चुनाव आयोग द्वारा संविधान और कानून के विपरीत कार्य किया गया और उसके इस तरह के प्रयास की कड़ी निंदा की जानी चाहिए।”
गौरतलब है कि पाकिस्तान में आरक्षित सीटों का मुद्दा 8 फरवरी के चुनावों के तुरंत बाद तब उठा जब, पीटीआई समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार सुन्नी इत्तेहाद परिषद (एसआईसी) में शामिल हो गए लेकिन ईसीपी ने उन्हें आरक्षित सीटें आवंटित करने से इनकार कर दिया।
पेशावर हाई कोर्ट ने 14 मार्च को ईसीपी फैसले के खिलाफ अपील खारिज कर दी थी।
अप्रैल महीने में, एसआईसी ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर की थी। शीर्ष अदालत ने 12 जुलाई को पीटीआई के पक्ष में फैसला सुनाया और इसे आरक्षित सीटों के लिए यो