जब वामन रूप में तीन पगों में नाप लिया ब्रह्मांड…

प्रवीण नांगिया (ज्योतिष सलाहकार):

वामन देव भगवान विष्णु के दस अवतारों में से पांचवें अवतार हैं। ये त्रेता युग और मनुष्य रूप में विष्णु के पहले अवतार हैं।

इससे पहले सतयुग में उनके चार अवतार पशु रूप में— मत्स्य, कूर्म, वराह और नृसिंह (न नर, न पशु) हुए थे। वामन देव ने भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को अभिजित मुहूर्त, श्रवण नक्षत्र में महर्षि कश्यप और अदिति के पुत्र के रूप में अवतार लिया।

इस अवसर पर वामन बटुक को सूर्य ने छत्र, महर्षि पुलह ने यज्ञोपवीत, भृगु ने खड़ाऊं, अदिति ने कोपीन, मरीचि ने पलाश का दंड, अगस्त्य ने मृगचर्म, बृहस्पति ने जनेऊ-कमंडल, अंगीरस ने वस्त्र, सरस्वती ने रुद्राक्ष की माला तथा कुबेर ने भिक्षा-पात्र प्रदान किए। इसके पश्चात वामन पिता से आज्ञा लेकर बलि के पास गए।

वामन अवतार का जन्म इंद्र को बलि के भय से मुक्ति दिलाने के लिए हुआ था। असुर होने के बावजूद बलि धर्मात्मा और दानवीर राजा थे।

उसके यश और कीर्ति से इंद्र भी भयभीत थे। इधर राजा बलि इंद्र पद पाने के लिए गुरु शुक्राचार्य की सहायता से सौंवा अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे, तब विष्णु वामन रूप में वहां पहुंचे।

उन्होंने राजा बलि से कुछ मांगने की इच्छा व्यक्त की। शुक्राचार्य ने बलि से कहा कि ये वामन रूप में विष्णु हैं, इसलिए इन्हें कोई वचन न दें।

लेकिन बलि ने उनकी बात को अनसुना करके वामन देव को वचन दे दिया। वचन पूरा करने का संकल्प लेने के लिए जब बलि ने कमंडल उठाया तो शुक्राचार्य उसके मुख के छिद्र पर सूक्ष्म रूप से बैठ गए ताकि बलि संकल्प के लिए जल न ले सकें। वामन देव ने यह देख लिया और उन्होंने एक सरकंडे को उस पात्र के छिद्र में डाल दिया। इससे शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई और वे ‘एकाक्षी’ यानी एक आंखवाले हो गए।

बलि के संकल्प लेने पर वामन देव ने तीन पग भूमि का दान मांगा। राजा बलि के इसे स्वीकार करते ही उन्होंने अपना रूप विराट कर लिया। उन्होंने एक पग में धरती, दूसरे पग में स्वर्ग ले लिया। जब उन्होंने तीसरा पग उठाया तो बलि भगवान विष्णु को पहचान गए और अपना सिर उनके चरणों के सामने कर दिया।

इससे वामन देव प्रसन्न हो गए और उसका वध करने के बजाय उसे पाताल के सुतल लोक का अधिपति बना दिया। उन्होंनेे बलि से वरदान मांगने को कहा, तब बलि ने उनसे कहा कि वे सदा उनके साथ रहें। बलि की इच्छा का सम्मान करते हुए वे ‘गदापाणि’ नाम से उनके द्वारपाल बन गए। साथ ही अगले मन्वन्तर में उन्हें इंद्र पद देने का वचन दिया।

इसके साथ ही उन्होंने राजा बलि को यह वरदान भी दिया कि वे वर्ष में एक बार अपनी प्रजा से मिलने के लिए पृथ्वी लोक पर आ सकते हैं। केरल में मान्यता है कि राजा बलि साल में एक बार अपनी प्रजा से मिलने के लिए पृथ्वी लोक पर आते हैं। इस दिन को वहां ओणम पर्व के रूप में मनाया जाता है।

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