जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्य मंत्री उमर अब्दुल्ला ने अफजल गुरू पर बयान देकर राजनीतिक गलियारों में एक नया विवाद खड़ा कर दिया है।
शुक्रवार को एएनआई से बात करते हुए अब्दुल्ला ने कहा कि अफजल गुरू की फांसी का उद्देश्य कभी पूरा नहीं हुआ।
उन्होंने कहा कि अगर गुरू की फांसी के लिए जम्मू-कश्मीर सरकार की की मंजूरी की जरूरत पड़ती तो हमारी सरकार कभी यह मंजूरी नहीं देती।
उमर ने कहा कि अफजल गुरू की फांसी में जम्मू-कश्मीर सरकार की कोई भूमिका नहीं थी, यह तत्कालीन केंद्र सरकार का मामला था। उन्होंने उसे फांसी दी। लेकिन मुझे नहीं लगता कि उसे फांसी देने का कोई भी उद्देश्य पूरा हुआ है।
पूर्व सीएम ने अपनी बात को जायज ठहराते हुए कहा कि वह मृत्युदंड के खिलाफ हैं और मैं नहीं मानता की अदालतें बिल्कुल अचूक होती हैं।
उन्होंने कहा कि सबूतों ने हमें बार-बार दिखाया है कि कई बार भारत में ही नहीं अन्य देशों में भी लोगों को फांसी दे दी गई और बाद में पता चला कि वह तो निर्दोष था।
बीजेपी बोली- अफजल गुरू की फांसी न्याय दिलाने के लिए जरूरी थी, कांग्रेस ने किया किनारा
उमर अब्दुल्ला के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए भाजपा नेता साजित यूसुफ ने कहा कि अफजल गुरु की फांसी जम्मू-कश्मीर के लोगों को न्याय दिलाने के लिए जरूरी थी।
संसद हमले के दौरान शहीद हुए लोगों को न्याय दिलाने के लिए जरूरी थी। उमर की इस टिप्पणी पर उनके साथ चुनाव लड़ रही कांग्रेस पार्टी ने उनके इस बयान से किनारा कर लिया।
कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद से इस बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि हम यहां यह बात क्यों कर रहे हैं। सालों बाद घाटी में चुनाव लौटा है यह चुनाव का समय है। लोग बयान देते हैं, मैं यहां पर इस पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता।
इससे पहले अफजल गुरू के भाई अजाज अहमद गुरु ने घोषणा की थी कि वह जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। यह चुनाव आर्टिकल 370 के खत्म होने के बाद का पहला विधानसभा चुनाव है।
यह लगभग 11 साल बाद होने वाला चुनाव है, इससे पहले हुए चुनाव में पीडीपी के साथ मिलकर भाजपा ने सरकार बनाई थी, जिसमें दोनों के रिश्तें बिगड़ने के बाद राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था।
जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव तीन चरणों में होंगे, जो 18 सितंबर से शुरू होंगे। वोटों की गिनती 8 अक्टूबर को होगी।