प्रवीण नांगिया (ज्योतिष सलाहकार):
भाद्रपद माह का पहला प्रदोष व्रत 31 अगस्त को है।
शनि प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव शंकर की विधिपूर्वक पूजा करते हैं। यह पूजा शाम के समय में प्रदोष मुहूर्त में करते हैं। शनि प्रदोष व्रत और शिव पूजा करने से व्यक्ति को पुत्र की प्राप्ति होती है।
प्रदोष व्रत के दिन भगवान शंकर और माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा की जाती है। प्रदोष व्रत में प्रदोष काल के दौरान पूजा का विशेष महत्व होता है।
प्रदोष व्रत के दिन भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा- अर्चना करने से सभी तरह के दुख- दर्द दूर हो जाते हैं और जीवन सुखमय हो जाता है।
मुहूर्त
भाद्रपद, कृष्ण त्रयोदशी प्रारम्भ – 02:25 ए एम, अगस्त 31
भाद्रपद, कृष्ण त्रयोदशी समाप्त – 03:40 ए एम, सितम्बर 01
प्रदोष काल- 06:43 पी एम से 08:59 पी एम तक
प्रदोष व्रत पूजा-विधि
सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें।
स्नान करने के बाद साफ- स्वच्छ वस्त्र पहन लें।
घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
अगर संभव है तो व्रत करें।
भगवान भोलेनाथ का गंगा जल से अभिषेक करें।
भगवान भोलेनाथ को पुष्प अर्पित करें।
इस दिन भोलेनाथ के साथ ही माता पार्वती और भगवान गणेश की पूजा भी करें। किसी भी शुभ कार्य से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है।
भगवान शिव को
भगवान शिव की आरती करें।
इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें।
प्रदोष व्रत पूजा-सामग्री-
पुष्प, पंच फल पंच मेवा, रत्न, सोना, चांदी, दक्षिणा, पूजा के बर्तन, कुशासन, दही, शुद्ध देशी घी, शहद, गंगा जल, पवित्र जल, पंच रस, इत्र, गंध रोली, मौली जनेऊ, पंच मिष्ठान्न, बिल्वपत्र, धतूरा, भांग, बेर, आम्र मंजरी, जौ की बालें,तुलसी दल, मंदार पुष्प, गाय का कच्चा दूध, ईख का रस, कपूर, धूप, दीप, रूई, मलयागिरी, चंदन, शिव व मां पार्वती की श्रृंगार की सामग्री आदि।