अनुसूचित जाति में सब डिविजन को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देशभर में इसको लेकर बहस चल रही है।
इसी बीच पसमांदा मुसलमानों ने भी भी अनुसूचित जाति में शामिल करने को लेकर अपनी मांग रख दी है। ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम मेहाज (AIPMM) और अन्य मुस्लिम संगठनों ने मांग की है कि कम से कम 12 जातियों को अनुसूचित जाति (SC) में शामिल किया जाए।
अलग-अलग धर्मों की जातियों को आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक स्तर के आधार पर अनुसूचित जाति में शामिल करने की रिपोर्ट तैयार करने के लिए बनाई गई जस्टिस (रिटायर्ड) केजी बालाकृष्णन कमेटी से भी मुस्लिम संगठनों ने मुलाकात की है।
पूर्व सांसद अली अनवर का कहना है कि कम से कम 12 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल किया जाए। उन्होंने कहा, उनकी हालत हिंदू अनुसूचित जातियों से भी बुरी है। उन्हें उनके ही समुदाय के लोग अछूत मानते हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक अनवर ने कहा, मुसलमानों में कम से कम 20 जातियां ऐसी हैं जिनकी आर्थिक स्थिति हिंदू दलितों से भी खराब है। बिहार जातिगत संवेक्षण में भी यह बात निकलकर सामने आई है। ये जातियों कुल मुस्लिमों की 6.62 फीसदी हैं।
वहीं बिहार में इनकी आबादी 1.16 फीसदी है। बता दें कि बीजेपी भी पसमांदा मुसलमान वोटों को अपने पाले में लाने की कोशिश में लगी है। बीजेपी ने अल्पसंख्यक मोर्चा को 50 लाख मुसलमानों को पार्टी में जोड़ने का काम सौंपा है।
वहीं एआईपीएमएम की मांग है कि अनुसूचित जाति की नई सूची निष्पक्षता के साथ बनाई जाए और इसमें दलित मुसलमानों और ईसायों को भी शामिल किया जाए। बता दें कि आदिवासी और पिछड़े मुसलमानों के लिए पसमांदा शब्द का इस्तेमाल किया जाता है।
अली अनवर ने कहा, काफी ज्यादा संख्या के बावजूद पसमांदा मुसलमानों को नौकरियों, विधायिकाओं और अल्पसंख्यक समुदायों में प्रतिनिधित्व नहीं मिल पा रहा है। दलित मूल के मुस्लिम और ईसाई लंबे समय से धार्मिक प्रतिबंधों को हटाने की मांग करते आए हैं।
बता दें कि 2022 में केंद्र सरकार ने रिटायर्ड जस्टिस केजी बालाकृष्णन की अध्यक्षता में आयोग बनाया था। इसका उद्देश्य नई जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की संभावना पर विचार करना था।
इसके तहत उन जातियों को महत्व दिया जाना है जो कभी हिंदू, बैद्ध या सिख धर्म से परिवर्तित होकर ईसाई या मुस्लिम बन गए हैं।