देश की शीर्ष नौकरशाही में 45 पदों को लेटरल एंट्री के जरिए भरने का विज्ञापन आया है।
इसके बाद से ही राहुल गांधी, अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव जैसे नेता सक्रिय हैं और सरकार पर आरक्षण छीनने का आरोप लगा रहे हैं।
इन नेताओं का कहना है कि सरकार लेटरल एंट्री से अपने पसंदीदा लोगों को लाएगी और एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग का आरक्षण छीन लिया जाएगा।
यूपीएससी की ओर से जारी विज्ञापन में निदेशक, संयुक्त सचिव और उप-सचिव जैसे पदों पर भर्ती निकाली गई है, जो 24 मंत्रालयों के लिए हैं। यूपीएससी का यह कदम कोई नया नहीं है।
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के दौर से ही ऐसा होता रहा है, लेकिन इस बार विपक्ष ने इसे आरक्षण से जोड़ दिया है।
इसके चलते नौकरशाही में लेटरल एंट्री को लेकर नए सिरे से बहस शुरू हो गई है। खासतौर पर लोकसभा चुनाव में आरक्षण छीने जाने और संविधान बदलने की बात कहकर यूपी जैसे राज्य में अच्छे वोट पाने वाले विपक्षी दल इस पर आक्रामक हैं।
वहीं सरकार लेटरल एंट्री को लेकर पुराना इतिहास याद दिला रही है। पूर्व पीएम मनमोहन सिंह, योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे मोंटेक सिंह अहलुवालिया और सैम पित्रोदा जैसे लोग लेटरल एंट्री से ही नौकरशाही का हिस्सा बने थे और लंबे समय तक पदों पर रहे।
क्या है लेटरल एंट्री, जिससे सीधे बनते हैं टॉप नौकरशाह
जैसा कि नाम है, लेटरल एंट्री के माध्यम से उन लोगों को सरकारी सेवा में लिया जाता है, जो परंपरागत काडर से नहीं आते। आईएएस नहीं होते, लेकिन उन्हें अपने पेशे का लंबा अनुभव होता है।
उस इंडस्ट्री अनुभव का लाभ लेने के लिए ही अकसर सरकार बाहर के लोगों को लेटरल एंट्री देकर सेवाओं में लाती रही है। टेलिकॉम, मीडिया, खनन जैसे कई ऐसे सेक्टर हैं, जिनमें विशेष पेशेवर अनुभव की जरूरत होती है।
परंपरागत काडर से आए लोगों की अपेक्षा सरकार ऐसे विभागों में कई बार इंडस्ट्री का अनुभव रखने वाले लोगों को उचित समझती है।
इसी के लिए लेटरल एंट्री की सुविधा दी गई है। आमतौर पर इसके माध्यम से मिड लेवल और सीनियर लेवल पर अफसरों को नियुक्ति मिलती है।
UPA के बनाए आयोग ने दिया था लेटरल एंट्री का सुझाव
औपचारिक तौर पर लेटरल एंट्री को पीएम नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में 2018 में शुरू किया गया था। लेकिन इसे बिना कोई नाम दिए ही भर्ती की जाती रही थी।
लेटरल एंट्री वाले लोगों को आमतौर पर 3 से 5 साल के लिए हायर किया जाता है। इसके बाद यदि संभावना होती है तो उन्हें सेवा विस्तार भी मिलता है।
इस पर विवाद के बाद सरकारी सूत्रों का कहना है कि लेटरल एंट्री को औपचारिक रूप देने की कोशिश तो यूपीए ने ही की थी। यूपीए सरकार ने 2005 में दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन किया था।
इसके चेयरमैन वीरप्पा मोइली थे। इस आयोग ने सिफारिश की थी कि कुछ पदों पर स्पेशलाइजेशन की जरूरत है और वहां नियुक्ति के लिए लेटरल एंट्री कराई जाए।
लेटरल एंट्री में क्यों नहीं मिलता आरक्षण
आयोग का कहना था कि प्राइवेट सेक्टर, अकादमिक जगत के लोगों, पीएसयू में काम करने वाले अधिकारियों को लेटरल एंट्री के माध्यम से नौकरशाही में जगह मिलनी चाहिए।
इस आयोग को भारतीय प्रशासनिक सेवा में सुधार के लिए सुझाव का जिम्मा दिया गया था। अब बात आरक्षण की करते हैं कि आखिर लेटरल एंट्री में यह क्यों नहीं मिलता, जिसे लेकर विवाद है।
इस पर कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय का कहना है कि आरक्षण 13 बिंदुओं वाली रोस्टर पॉलिसी से मिलता है। यह एक काडर की भर्ती पर होता है, लेकिन किसी विभाग में यदि एक ही पद हो तो फिर ऐसा नहीं किया जा सकता।
विभाग के सूत्रों का कहना है कि कुल 45 पद हैं और अलग-अलग लेवल पर मंत्रालयों में रखे जाने हैं। ये सारे पद सिंगल हैं और उनमें आरक्षण नहीं लागू हो सकता।