दिल्ली हाईकोर्ट ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत एक बड़ा फैसला दिया है।
अदालत ने इस फैसले में कहा है कि एक महिला को भी बच्चे पर पेनीट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट के लिए यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत आपराधिक कार्यवाही का सामना करना पड़ सकता है।
अदालत ने अपने फैसले में साफ कर दिया कि पॉक्सो एक्ट के तहत अपराध के लिए अदालती कार्यवाही केवल पुरुषों तक ही सीमित नहीं है।
बच्चों को यौन अपराधों से बचाने के लिए लाया गया था कानून
न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी ने कहा कि पॉक्सो अधिनियम बच्चों को यौन अपराधों से बचाने के लिए बनाया गया था। भले ही अपराध किसी पुरुष ने किया हो या महिला महिला ने यह कानून सब पर लागू होता है।
ऐसे में कोई कारण नहीं है कि धारा-3 (पेनीट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट) में प्रयुक्त शब्द ‘व्यक्ति’ को केवल पुरुष तक सीमित मान लिया जाए।
अदालत ने यह फैसला पिछले हफ्ते पॉक्सो एक्ट के तहत मामले में एक आरोपी की याचिका पर आया था।
महिला आरोपी ने क्या दी थी दलील
इसमें आरोपी की ओर से दलील दी गई थी कि चूंकि वह एक महिला है, इसलिए उसके खिलाफ पेनीट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट के अपराध में केस नहीं चलाया जा सकता है।
आरोपी ने अपने खिलाफ आरोप तय करने पर सवाल उठाया था। आरोपी ने दलील दी थी कि प्रावधान में पुरुष संबोधन के लिए सर्वनाम वह का इस्तेमाल किया गया है। इस कानून का मकसद केवल पुरुष अपराधी के खिलाफ कार्यवाही से था।
महिला अपराधियों पर भी लागू है कानून
हालांकि, दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि कोई वजह नहीं है कि पॉक्सो एक्ट की धारा-तीन में उल्लिखित ‘व्यक्ति’ शब्द को केवल पुरुष के संदर्भ में पढ़ा जाए।
पॉक्सो अधिनियम की धारा-तीन और पांच (गंभीर पेनीट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट) में उल्लिखित कृत्य अपराधी की लैंगिक स्थिति की परवाह किए बिना अपराध हैं। भले ही ऐसा अपराध महिला ने किसी बच्चे पर क्यों ना किया हो।