सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को गुजरात की सूरत की एक जज और एक पुलिस अधिकारी को एक मामले में आरोपी को पूछताछ के लिए पुलिस कस्टडी में भेजे जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का दोषी ठहराया।
आरोपी को पूछताछ के लिए कस्टडी में भेजे जाते समय इस तथ्य की अनदेखी की गई थी कि उसे सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही अग्रिम जमानत दे दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात की उक्त जज पर पुलिस कस्टडी प्रदान करते समय ‘पक्षपातपूर्ण’ और ‘मनमाने तरीके’ से काम करने का आरोप लगाया।
कोर्ट ने एक फैसले में कहा कि आपराधिक न्याय प्रणाली के तहत अदालतों को पुलिस कस्टडी प्रदान करने से पहले मामले के तथ्यों पर न्यायिक विवेक का उपयोग करने की आवश्यकता होती है, बशर्ते कि यह वास्तव में आवश्यक हो।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘‘अदालतों से यह अपेक्षा नहीं की जाती कि वे जांच एजेंसियों के संदेशवाहकों के रूप में कार्य करें तथा रिमांड आवेदनों को नियमित तरीके से अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।’’
जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने 8 दिसंबर 2023 को तुषारभाई रजनीकांत भाई शाह को अग्रिम जमानत प्रदान की थी।
बेंच ने इस बात पर हैरानगी जताई कि उसके आदेश के लागू होने के बावजूद एक न्यायिक अधिकारी ने जांच अधिकारी की याचिका पर गौर किया और आरोपी को पूछताछ के लिए पुलिस कस्टडी में भेज दिया।
बेंच ने कहा, ‘‘अवमाननाकर्ता प्रतिवादी संख्या सात (दीपाबेन संजयकुमार ठाकर, छठीं अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, सूरत) द्वारा याचिकाकर्ता को पुलिस हिरासत में भेजने और इसकी अवधि पूरी होने पर उसे रिहा न करने की कार्रवाई स्पष्ट रूप से इस अदालत के आदेश के विरुद्ध है…और अवमानना के समान है।’’
बेंच ने कहा, ‘‘अवमाननाकर्ता-प्रतिवादी (न्यायाधीश) की अवज्ञाकारी कार्रवाई भी, पुलिस रिमांड की अवधि समाप्त होने के बाद याचिकाकर्ता को लगभग 48 घंटे तक अवैध हिरासत में रखने के लिए जिम्मेदार है। न्यायिक अधिकारी के आचरण से इस मामले में उनके पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण का स्पष्ट संकेत मिलता है।”
सूरत के वेसु पुलिस थाने के पुलिस इंस्पेक्टर आर.वाई. रावल की भूमिका पर विस्तार से चर्चा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपी को दिए गए अंतरिम संरक्षण के दौरान उसकी पुलिस कस्टडी के लिए अर्जी इस अदालत के आदेश की घोर अवहेलना है और अवमानना के समान है। बेंच ने उन्हें पिछले वर्ष 8 दिसंबर के आदेश की अवमानना करने का दोषी ठहराया।
जस्टिस गवई ने 73 पन्नों का फैसला लिखते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से इस बात में कोई संदेह नहीं रह जाता कि अग्रिम जमानत का अंतरिम संरक्षण ‘‘पूर्ण है, जब तक कि वह इस याचिका पर निर्णय करते समय इसमें संशोधन या परिवर्तन नहीं करता’’ जो अभी भी लंबित है।
सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत की जज की बिना शर्त माफी को अस्वीकार करते हुए कहा कि उन्होंने मामले को ‘‘पूर्वनिर्धारित तरीके’’ से निपटाया है।
हालांकि, बेंच ने सूरत पुलिस कमिश्नर को अवमानना के आरोपों से मुक्त करते हुए कहा कि उनकी भूमिका कस्टडी में यातना संबंधी आरोपी के दावे का पता लगाने के लिए पुलिस थाने में लगाए गए सीसीटीवी कैमरों के काम न करने के पहलू तक ही सीमित थी।