बांग्लादेश में तख्तापलट होने के बाद अब अंतरिम सरकार का गठन होने वाला है। इसके मुखिया फिलहाल मोहम्मद युनूस होंगे, जो नोबेल विजेता अर्थशास्त्री हैं।
लेकिन उनकी इस अंतरिम सरकार में बड़ा रोल जमात-ए-इस्लामी जैसे कट्टरवादी संगठन का भी होगा, जिसके लिंक आतंकवाद से भी जुड़ते रहे हैं।
बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी एक बदनाम संगठन रहा है और बांग्ला राष्ट्रवादियों का उससे हमेशा एक टकराव रहा है।
ऐसे में जमात-ए-इस्लामी का सत्ता के केंद्र में आना बांग्लादेश के साथ ही भारत के हितों के लिए भी टेंशन की बात है। जमात-ए-इस्लामी वह संगठन था, जिसने 1971 के बांग्ला मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सेना का साथ दिया था। यही नहीं बीते 50 सालों का उसका इतिहास कट्टरपंथियों और आतंकी समूहों को बढ़ावा देने का रहा है।
हाल में बांग्लादेश में जो घटनाक्रम हुआ है और जिस तरह से शेख हसीना को जान बचाकर भागना पड़ा है। उसमें जमात और उसकी स्टूडेंट विंग छात्र शिविर का बड़ा योगदान है। माना जाता है कि जमात-ए-इस्लामी ने ही मुल्क में शेख हसीना और भारत विरोधी भावनाओं को भड़काया।
यही वजह थी कि हिंसक प्रदर्शनों के दौरान मशहूर इंडियन कल्चरल सेंटर को फूंका गया। इसके अलावा हिंदुओं पर भी 27 जिलों में भीषण हमले हुए हैं। सोमवार को राष्ट्रपति ने राजनीतिक दलों की मीटिंग बुलाई थी, जिसमें जमात-ए-इस्लामी को भी बुलाया गया था।
इससे साफ है कि उसकी भूमिका बढ़ने वाली है। फिलहाल इस संगठन के अमीर शफीकुर रहमान हैं, जो पेशे से एक डॉक्टर हैं।
दरअसल शेख हसीना के दौर में जमात-ए-इस्लामी पर बैन लगा दिया गया था। इसके अलावा अथॉरिटीज को आदेश दिया था कि इसके साथ एक आतंकी संगठन जैसा ही बर्ताव किया जाए।
इसके चुनाव लड़ने पर हसीना सरकार ने पहले ही पाबंदी लगा दी थी। वहीं जमात के कई नेताओं पर 1971 के युद्ध अपराधों के मामले में केस भी चला था और फांसी तक दी गई।
जमात-ए-इस्लामी पर आरोप रहा है कि 1971 में उसने पाकिस्तान सेना का साथ दिया था और आज भी वह आईएसआई के इशारे पर काम करता है।
क्या है जमात-ए-इस्लामी की विचारधारा
जमात-ए-इस्लामी का गठन 1941 में उस दौरान हुआ था, जब बांग्लादेश और पाकिस्तान भारत का हिस्सा हुआ करते थे। इसके बाद 1947 में देश विभाजन के बाद इस संगठन की अलग-अलग शाखाएं भारत और पाकिस्तान में शुरू हुईं।
फिर 1971 के बाद बांग्लादेश में इसने काम शुरू किया। इस संगठन की विचारधारा यह है कि सभी मुसलमानों को इस्लामिक नियमों का ही पालन करना चाहिए।
उन्हें अल्लाह और पैगंबर के दिखाए रास्ते पर चलना चाहिए। यह संगठन मुक्त जीवनशैली के खिलाफ रहा है और उदार विचारधारा के विरुद्ध हिंसक रहा है।