प्रियंका प्रसाद (ज्योतिष सलाहकार):
श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरियाली तीज का व्रत बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है इस हरियाली तीज को श्रावणी तीज भी कहा जाता है भारत के पश्चिमी क्षेत्र में इसे मधु शुरुआत तृतीय भी कहा जाता है।
इस दिन सुहागिनें अपने पति की लम्बी आयु के लिए, अच्छी सेहत के लिए तथा सुख-समृद्धि के लिए व्रत करती है। कुंवारी कन्या सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए इस व्रत को करती हैं।
अखण्ड सौभाग्य का प्रतीक है हरियाली तीज। माता गौरी एवं भोले नाथ की कृपा प्राप्ति का व्रत है। इसे श्रावणी तीज भी कहा जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती का दोबारा मिलन हुआ था।
पूजा मुहूर्त्त :-
इस वर्ष तृतीया तिथि 6 अगस्त दिन मंगलवार को सायं 6:11 बजे से आरंभ होकर 7 अगस्त दिन बुधवार को रात में 7:56 तक प्राप्त रहेगा। इस दिन पूर्व फाल्गुनी नक्षत्र रात में 7:48 बजे तक व्याप्त रहेगा।
परिधि योग दिन में 12:12 तक व्याप्त रहेगा। तत्पश्चात शिवयोग आरंभ हो जाएगा। साथ ही इस दिन स्थिर नामक औदायिक योगा व्याप्त रहेगा।
चंद्रमा सूर्य की राशि सिंह में 2:25 बजे तक व्याप्त रहेंगे। प्रदोष काल अर्थात गोधुल बेला 06:00 से 06:55 बजे तक ।
हिंदू धर्म में महिलाओं के लिए तीज व्रत को करवा चौथ व्रत के समान फलदायक माना जाता है। यह व्रत माता पार्वती तथा भगवान शिव के मिलन के स्वरूप के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ने माता पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया था।
तभी से इस व्रत को अर्थात माता पार्वती को तिजा माता भी कहा जाता है। इस व्रत को सुहागिन महिलाओं के साथ-साथ कुंवारी कन्याएं भी व्रत को करती हैं। सुहागन स्त्रियां अपने सौभाग्य की रक्षा के लिए करती हैं तथा कुंवारी कन्याएं सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए इस व्रत को बड़े ही श्रद्धा भाव के साथ करती हैं।
इस दिन सुहागन स्त्रियां अपने ससुराल से सुहाग का सामान कपड़े चूड़ी तथा श्रृंगार की वस्तु आदि उपहार में प्राप्त करती हैं।
दिन भर व्रत रहकर शुभ मुहूर्त्त में हरियाली तीज व्रत कथा का श्रवण करती है। पूजा के समय व्रती महिलाएं पति की लम्बी आयु के लिए हरी चूड़ीयां, हरी साड़ी, सिंदूर सहित अन्य सुहाग का सामान सास या जेठानी को देकर आशीर्वाद प्राप्त करती है।
इस दिन श्रृंगार करके महिलाएं शिव पार्वती की विशेष आराधना करती हैं तथा माता पार्वती एवं शिव से सौभाग्य की रक्षा की कामना करती हैं।
इस दिन परंपरा अनुसार स्त्रियां एकत्र होकर झूला झूलती हैं तथा नृत्य दान करती हैं। दिनभर व्रत रहकर सायं काल प्रदोष काल में भगवान शिव माता पार्वती की तथा अपने इष्टदेव की विशेष आराधना करने के बाद चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है तथा चंद्रमा की पूजा की जाती है।