सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक अधिकारियों को पेंशन और अन्य सेवानिवृत्ति लाभों की बकाया राशि के भुगतान पर द्वितीय राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग (एसएनजेपीसी) की सिफारिशों का पालन न करने पर गुरुवार को कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य और वित्त सचिवों को तलब किया।
एसएनजेपीसी की सिफारिशों का पालन न करने पर अप्रसन्नता जाहिर करते हुए प्रधान न्यायाधीश (CJI) डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा, ”अब हम जानते हैं कि अनुपालन कैसे कराया जाता है।” पीठ ने कहा, ”हम उन्हें जेल नहीं भेज रहे हैं, लेकिन उन्हें यहीं रहने दीजिए, फिर हलफनामा दाखिल किया जाएगा। उन्हें अभी व्यक्तिगत रूप से पेश होने दीजिए।”
बेंच ने कहा कि हालांकि राज्यों को सात मौके दिए गए हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि पूर्ण अनुपालन नहीं हुआ है तथा कई राज्य अभी भी चूक कर रहे हैं। पीठ ने कहा, ”मुख्य और वित्त सचिवों को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होना होगा। ऐसा न करने पर न्यायालय अवमानना का मामला शुरू करने के लिए बाध्य होगा।”
सुनवाई के दौरान सामने आए विवरण के अनुसार अदालत ने पाया कि आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, दिल्ली, असम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मिजोरम, जम्मू-कश्मीर, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, केरल, मेघालय, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, मणिपुर, ओडिशा, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, सिक्किम और त्रिपुरा सिफारिशों का पालन नहीं करने वाले राज्य और केंद्र शासित प्रदेश हैं।
पीठ ने इन राज्यों के दो शीर्ष नौकरशाहों को 23 अगस्त को व्यक्तिगत रूप से उसके समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दिया। विस्तृत आदेश की प्रतीक्षा है। पीठ ने स्पष्ट किया कि वह अब और समय नहीं बढ़ायेगी।
न्यायालय ने पेश की गई दलीलों पर गौर करने तथा वकील के. परमेश्वर द्वारा उपलब्ध कराए गए नोट का अवलोकन करने के बाद आदेश पारित किया। परमेश्वर न्यायालय की सहायता न्याय मित्र (एमिकस क्यूरी) के रूप में कर रहे हैं।
उन्होंने वर्तमान एवं सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारियों को मिलने वाले भत्तों पर राज्यों द्वारा स्रोत पर कर कटौती (टीडीएस) का भी उल्लेख किया।
पीठ ने विभिन्न राज्यों द्वारा एसएनजेपीसी के अनुपालन पर दलीलों को सुना। न्यायालय ने पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों की दलीलों को खारिज कर दिया, जिन्होंने न्यायिक अधिकारियों को बकाया राशि और अन्य लाभों के भुगतान पर सिफारिशों के अनुपालन में कथित देरी के संबंध में एक और वर्ष का समय मांगा था।
इसके अलावा, असम, आंध्र प्रदेश, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश और केरल की दलीलों को भी खारिज कर दिया गया। पीठ ने इन राज्यों को 20 अगस्त तक अनुपालन रिपोर्ट देने का निर्देश दिया और साथ ही इनके मुख्य सचिवों और वित्त सचिवों को 23 अगस्त को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने को कहा।
न्यायालय ने असम की इस दलील को खारिज कर दिया कि आदेश को स्थगित कर दिया जाना चाहिए क्योंकि राज्य बड़े पैमाने पर बाढ़ की स्थिति का सामना कर रहा है।
पीठ ने दिल्ली की इस दलील को भी स्वीकार नहीं किया कि वह केंद्र की मंजूरी का इंतजार कर रही है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ”हमें इससे कोई लेना-देना नहीं है। आप केंद्र के साथ मिलकर इसे सुलझा लें।”
देशभर के न्यायिक अधिकारियों की सेवा शर्तों में एकरूपता की आवश्यकता पर बल देते हुए उच्चतम न्यायालय ने 10 जनवरी को एसएनजेपीसी के अनुसार सेवानिवृत्ति लाभ, वेतन, पेंशन और अन्य आदेशों के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए प्रत्येक उच्च न्यायालय में दो-न्यायाधीशों की समिति के गठन का निर्देश दिया था।
उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि यह गंभीर चिंता का विषय है कि अन्य सेवाओं के अधिकारियों ने एक जनवरी, 2016 को अपनी सेवा शर्तों में संशोधन का लाभ उठाया है जबकि न्यायिक अधिकारियों से संबंधित ऐसे ही मुद्दे अब भी आठ साल से अंतिम निर्णय का इंतजार कर रहे हैं।
पीठ ने कहा था कि सेवा से सेवानिवृत्त हुए न्यायाधीश और जिन लोगों का निधन हो गया है, उनके परिवार के पेंशनभोगी भी समाधान का इंतजार कर रहे हैं। एसएनजेपीसी की सिफारिशों में जिला न्यायपालिका की सेवा शर्तों को निर्धारित करने के लिए एक स्थायी तंत्र स्थापित करने के मुद्दे के समाधान के अलावा वेतन संरचना, पेंशन और पारिवारिक पेंशन और भत्ते आदि शामिल हैं।