प्रियंका प्रसाद (ज्योतिष सलाहकार):
देवशयनी एकादशी आषाढ़ माह शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है।
इस बार यह 16 जुलाई की शाम 8 बजकर 33 मिनट से आरंभ होकर 17 जुलाई की रात 9 बजकर 2 मिनट तक रहेगी। उदयतिथि होने के कारण साधक 17 को ही व्रत रहेगा।
इसके साथ देव चार माह के लिए विश्राम में चले जाएंगे और (अबूझ तिथि को छोड़कर)सभी मांगलिक कार्यों पर चार माह के लिए रोक लग जाएगी। देव शयनी एकादशी के कई शुभ योग भी बन रहे हैं। जिनमें पूजन लाभकारी रहेगा।
यह जानकारी देते हुए लाइनपार कैल्टन स्कूल के पास स्थित हरि ज्योतिष संस्थान के ज्योतिर्विद पंडित सुरेंद्र शर्मा, आरपीएफ के मंदिर के पुजारी केशव दत्त जोशी तथा आचार्य गौरव कौशिक ने बताया कि देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु चार माह के लिए क्षीर सागर में शयन के लिए चले जाएंगे। फिर कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की एकादशी जिसे देव उठनी एकादशी भी कहा जाता है को जागृत होंगे।
मांगलिक कार्यों पर रोक
चातुर्मास 17 जुलाई से आरंभ होगा। इस दिन देव शयनी एकादशी 17 जुलाई से देव उठनी एकादशी यानि 12 नवंबर तक विवाह समारोह, सगाई, मुंडन,बच्चे का नामकरण और गृह प्रवेश आदि सभी मांगलिक कार्य(अबूझ मुर्हूत को छोड़ कर) बंद रहेंगे। यह देव उठनी एकादशी से से ही आरंभ होंगे।
बन रहे यह योग
देवशयनी एकादशी के दिन सुबह 7 बजकर 5 मिनट तक शुभ योग बन रहा है। इसके बाद शुक्ल योग का निर्माण होगा। इसका समापन 18 जुलाई की सुबह 6 बजकर 13 मिनट पर होगा। वहीं देव शयनी एकादशी पर सर्वार्थ सिद्धि योग भी रहेगा। इनके एक साथ होना साधना और व्रत के लिए शुभ फल दायी माना गया है।
देवशयनी एकादशी पूजा-विधि:
सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं।
घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें।
भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें।
अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें।
भगवान की आरती करें।
भगवान को भोग लगाएं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है। भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें। ऐसा माना जाता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं।
इस पावन दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें।
इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें।