लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने शुक्रवार को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भारतीय रेलवे के लोको पायलटों से मुलाकात की।
हालांकि बैठक के बाद एक विवाद भी खड़ा हो गया। इस बैठक के बाद उत्तर रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी (सीपीआरओ) दीपक कुमार ने कहा कि जिन सदस्यों के साथ राहुल गांधी ने बातचीत की है वे दिल्ली डिवीजन से नहीं बल्कि बाहर से थे।
सीपीआरओ दीपक कुमार ने समाचार एजेंसी एएनआई को बताया, “उन्होंने (राहुल गांधी) हमारी क्रू लॉबी देखी। उनके साथ 7-8 कैमरामैन थे।
उन्होंने हमारी क्रू लॉबी का दौरा किया और जांच की कि हम अपनी क्रू लॉबी कैसे बुक करते हैं। क्रू लॉबी से बाहर आने के बाद, उन्होंने कुछ लोगों से चर्चा की। वहां करीब 7-8 क्रू मेंबर थे जो हमारी लॉबी से नहीं थे, लेकिन ऐसा लग रहा था कि वे बाहर से थे।
चूंकि उनके पास 7-8 कैमरामैन थे, इसलिए वे उन्हें फिल्मा रहे थे और रील बना रहे थे।” हालांकि, सीपीआरओ के बयान का विभिन्न लोको पायलट संघों ने विरोध किया है, जिनके सदस्य राहुल गांधी के साथ बैठक में मौजूद थे।
न्यूज एजेंसी पीटीआई ने ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसिएशन के साउथ जोन के अध्यक्ष आर कुमारसन के हवाले से बताया, “मैं यह कहना चाहता हूं कि राहुल गांधी ने अलग अलग रेल डिवीजनों के लोको पायलटों से बातचीत की, न कि केवल दिल्ली के लोगों से।”
“तनाव और एकाग्रता की समस्या होती हैं दुर्घटनाएं”
लोको पायलटों के साथ राहुल गांधी की बातचीत पश्चिम बंगाल में कंचनजंगा एक्सप्रेस ट्रेन दुर्घटना के कुछ सप्ताह बाद हुई है, जिसमें कम से कम 10 लोगों की जान चली गई थी।
राहुल गांधी ने आधिकारिक एक्स हैंडल पर लोको पायलटों से बातचीत का वीडियो क्लिप साझा करते हुए कहा कि बातचीत के दौरान उनमें से कई ने ज्यादा काम के घंटों की शिकायत की।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए राहुल गांधी ने कहा, “नरेंद्र मोदी की सरकार में लोको पायलटों का जीवन पूरी तरह से पटरी से उतर गया है।
लोको पायलट दिन में 16-16 घंटे काम करने को मजबूर हैं, वे गर्मी से तपते केबिन में बैठे रहते हैं। जिन पर लाखों लोगों की जिंदगी निर्भर है, उन्हें अब अपने जीवन पर कोई भरोसा नहीं है।”
राहुल गांधी ने कहा कि बिना किसी ब्रेक के लंबे समय तक काम करने से बहुत तनाव और एकाग्रता की समस्या होती है, जो दुर्घटनाओं का मुख्य कारण बन जाती है।
उन्होंने कहा, “टॉयलेट जैसी बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित लोको पायलटों के काम के घंटों की कोई सीमा नहीं है और उन्हें कोई छुट्टी भी नहीं मिलती। इसके कारण वे शारीरिक और मानसिक रूप से थके हुए और बीमार हो रहे हैं। ऐसी परिस्थितियों में लोको पायलटों से ट्रेन चलवाना मतलब उनकी और यात्रियों की जान जोखिम में डालना है।”