जुलाई से पहले मर्डर यानी धारा 302 और रेप को धारा 376 से जाना जाता था।
हालांकि, सोमवार यानी 1 जुलाई से लागू हुए तीन नए कानूनों ने इन अपराधों की सेक्शन के रूप में पहचान बदल दी है। ये ही नहीं, धोखाधड़ी, कर्फ्यू (CrPC) जैसी कई धाराएं भी बदल गई हैं।
भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) ने नए कानूनों के तौर पर जगह ली है।
आम जनता की जुबान पर मर्डर यानी भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302 के नाम से जाना जाता था, लेकिन अब इसकी धारा बदल कर 103 हो गई है। वहीं, रेप के अपराध को धारा 376 के तहत परिभाषित किया गया था, अब उसे बीएनएस की धारा 64 से जाना जाएगा।
पहले अगर कर्फ्यू का ऐलान होता था, तो CrPC की धारा 144 के तहत पाबंदियां लगाई जाती थीं, लेकिन अब यह बीएनएसएस की धार 163 में पहुंच गया है।
किसने किसकी जगह ली
IPC की जगह अब BNS आ गया है। वहीं, BNSS ने कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर की जगह ली है। इंडियन एविडेंस की जगह BSA लाया गया है।
हालांकि, जो मामले यह कानून लागू होने से पहले दर्ज किए गए हैं उनके अंतिम निपटारे तक उन मामलों में पुराने कानूनों के तहत मुकदमा चलता रहेगा।
क्या बड़े बदलाव
नए कानूनों से एक आधुनिक न्याय प्रणाली स्थापित होगी जिसमें ‘जीरो एफआईआर’, पुलिस में ऑनलाइन शिकायत दर्ज कराना, इलेक्ट्रॉनिक माध्यम जैसे कि ‘एसएमएस’ (मोबाइल फोन पर संदेश) के जरिये समन भेजने और सभी जघन्य अपराधों के वारदात स्थल की अनिवार्य वीडियोग्राफी जैसे प्रावधान शामिल होंगे।
नए कानूनों के तहत आपराधिक मामलों में फैसला मुकदमा पूरा होने के 45 दिन के भीतर आएगा और पहली सुनवाई के 60 दिन के भीतर आरोप तय किए जाएंगे।
राजद्रोह की जगह देशद्रोह
दुष्कर्म पीड़िताओं का बयान कोई महिला पुलिस अधिकारी उसके अभिभावक या रिश्तेदार की मौजूदगी में दर्ज करेगी और मेडिकल रिपोर्ट सात दिन के भीतर देनी होगी।
नये कानूनों में संगठित अपराधों और आतंकवाद के कृत्यों को परिभाषित किया गया है, राजद्रोह की जगह देशद्रोह लाया गया है और सभी तलाशी तथा जब्ती की कार्रवाई की वीडियोग्राफी कराना अनिवार्य कर दिया गया है।
महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों पर एक नया अध्याय जोड़ा गया है, किसी बच्चे को खरीदना और बेचना जघन्य अपराध बनाया गया है और किसी नाबालिग से सामूहिक दुष्कर्म के लिए मृत्युदंड या उम्रकैद का प्रावधान जोड़ा गया है।
महिलाओं और बच्चों को प्राथमिकता
नए कानूनों में महिलाओं व बच्चों के खिलाफ अपराधों की जांच को प्राथमिकता दी गयी है जिससे मामले दर्ज किए जाने के दो महीने के भीतर जांच पूरी की जाएगी।
नए कानूनों के तहत पीड़ितों को 90 दिन के भीतर अपने मामले की प्रगति पर नियमित रूप से जानकारी पाने का अधिकार होगा।
नए कानूनों में, महिलाओं व बच्चों के साथ होने वाले अपराध पीड़ितों को सभी अस्पतालों में निशुल्क प्राथमिक उपचार या इलाज मुहैया कराया जाएगा।