प्रियंका प्रसाद (ज्योतिष सलाहकार) :
निर्जला एकादशी का शास्त्रों में मोक्ष प्रदान करने वाला बताया गया है।
इस साल निर्जला एकादशी व्रत 18 जून को रखा जाएागा। सालभर में 24 एकादशी आता है, उसमें सबसे महत्वपूर्ण निर्जला एकादशी को माना जाता है।
इसे भीमसेन एकादशी भी कहा जाता है। इस दौरान गंगा घाटों में लोग स्नान करते हैं और दान करते हैं। इस दिन जलदान का बहुत महत्व कहा जाता है।
यहां पढ़ें व्रत की कथा-
जब वेदव्यास ने पांडवों को चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया था। तब युधिष्ठिर ने कहा – जनार्दन! ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी के बारे में विस्तार से बताएं। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा हे राजन् ! इसके बारे में परम धर्मात्मा व्यासजी बताएंगे।
तब वेदव्यासजी कहने लगे- कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशी में भोजन नहीं किया जाता है, अगले दिन द्वादशी को स्नान करके पवित्र होकर फूलों से भगवान केशव की पूजा करें।
फिर पहले ब्राह्मणों को भोजन देकर अन्त में खुद भोजन करें।
इस पर भीमसेन बोले- पितामह! मैं आपके सामने सच कहता हूं। मुझसे एक बार भोजन करके भी व्रत नहीं किया जा सकता, तो फिर उपवास करके मैं कैसे रह सकता हूं।
मैं पूरे सालभर में केवल एक ही उपवास कर सकता हूं। जिससे स्वर्ग की प्राप्ति हो , ऐसा कोई एक व्रत निश्चय करके बताइये। मैं उसका यथोचित रूप से पालन करुंगा।
व्यासजी ने कहा- भीम! ज्येष्ठ मास में सूर्य वृष राशि पर हो या मिथुन राशि पर, शुक्लपक्ष में जो एकादशी हो, उसका यत्नपूर्वक निर्जल व्रत करो। केवल कुल्ला या आचमन करने के लिए मुख में जल डाल सकते हो, उसको छोड़कर किसी प्रकार का जल विद्वान् पुरुष मुख में न डालें, अन्यथा व्रत भंग हो जाता है।
एकादशी को सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्योदय तक मनुष्य जल का त्याग करे तो यह व्रत पूर्ण होता है। इसके बाद द्वादशी को प्रभातकाल में स्नान करके ब्राह्मणों को विधिपूर्वक जल और सुवर्ण का दान करे।
इस प्रकार सब कार्य पूरा करके जितेन्द्रिय पुरुष ब्राह्मणों के साथ भोजन करें। वर्षभर में जितनी एकादशियां होती हैं, उन सबका फल इस निर्जला एकादशी से मनुष्य प्राप्त कर लेता है।
जिन्होंने श्रीहरि की पूजा और रात्रि में जागरण करते हुए इस निर्जला एकादशी का व्रत किया है, उन्होंने अपने साथ ही बीती हुई सौ पीढ़ियों को और आने वाली सौ पीढ़ियों को भगवान वासुदेव के परम धाम में पहुंचा दिया है।
जो इस एकादशी की महिमा को भक्तिपूर्वक सुनता अथवा उसका वर्णन करता है, वह स्वर्गलोक में जाता है। चतुर्दशीयुक्त अमावस्या को सूर्यग्रहण के समय श्राद्ध करके मनुष्य जिस फल को प्राप्त करता है, वही फल इस कथा को सुनने से भी मिलता है।
भीमसेन! ज्येष्ठ मास में शुक्ल पक्ष की जो शुभ एकादशी होती है, उसका निर्जल व्रत करना चाहिए। उस दिन श्रेष्ठ ब्राह्मणों को शक्कर के साथ जल के घड़े दान करने चाहिए।
ऐसा करने से मनुष्य भगवान विष्णु के समीप पहुंचकर आनन्द का अनुभव करता है। इसके बाद द्वादशी को ब्राह्मण भोजन कराने के बाद स्वयं भोजन करे।
जो इस प्रकार पूर्ण रूप से पापनाशिनी एकादशी का व्रत करता है, वह सब पापों से मुक्त हो आनंदमय पद को प्राप्त होता है। यह सुनकर भीमसेन ने भी इस शुभ एकादशी का व्रत आरम्भ कर दिया।