पंजाब की 13 लोकसभा सीटों पर बीजेपी को एक पर भी जनादेश नहीं मिला। पंजाब में कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन करते हुए 7 सीटें जीती।
वहीं राज्य की सत्ताधारी पार्टी आम आदमी पार्टी ने सिर्फ 3 सीटों पर ही जीत हासिल कर पाई। और लंबे समय तक पंजाब के ऊपर शासन करने वाली शिरोमणि अकाली दल सिर्फ एक ही सीट पर सिमट कर रह गई।
पंजाब के दो निर्दलीय विजेताओं ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा। इनमें से पहली सीट है खडूर साहिब जहां से खालिस्तानी नेता अमृतपाल सिंह और दूसरी सीट है फरीदकोट सीट जहां से सरबजीत सिंह खालसा ने भारी मतों से जीत हासिल की है।
सरबजीत सिंह खालसा, उसी बेअंत सिंह के बेटे हैं, जिन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या की थी।
फरीदकोट और खडूर साहिब सीटों के नतीजे यह दिखाते हैं कि पंजाब की जनता पुराने राजनीतिक दलों से खुश नहीं है और ऊब चुकी है। जनता के दिलों में पारम्परिक दलों के प्रति असंतोष है।
अमृतपाल सिंह ने खडूर साहिब सीट से पंजाब में सबसे ज्यादा 1.97 लाख मतों के अन्तर से जीत दर्ज की है। पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी जालंधर सीट से 1.75 लाख मतों के अन्तर से जीतें।
बीजेपी और शिरोमणि अकाली दल ने वर्षों पुराने अपने गठबंधन को तोड़ते हुए, अलग-अलग चुनाव लड़ा। वहीं बीजेपी अपनी पुरानी दो सीटें होशियारपुर और गुरदासपुर नहीं बचा पाई।
लेकिन पंजाब में बीजेपी का वोट शेयर शिरोमणि अकाली दल के मुकाबले ज्यादा रहा। बीजेपी को 18.56% वोट मिले तो अकाली दल मात्र 13.42% वोट पाने में सफल हुआ।
पंजाब में पार्टियों ने अपने 7 सांसदों को दोबारा टिकट दिया था, लेकिन 7 में से केवल 3 हरसिमरत कौर बादल, डॉ. अमर सिंह और गुरजीत सिंह औजला ही अपनी सीट बचाने में कामयाब हुए।
कांग्रेस नेता मनीष तिवारी, जो चंडीगढ़ से चुनाव लड़ रहे थे, बहुत ही कम मार्जिन से अपनी सीट बचा पाए।
पंजाब में बीजेपी को भारी नुकसान हुआ है। लेकिन वोट शेयर में बढ़ोतरी हुई है।
पंजाब में दो खालिस्तानी नेताओं का जीतना इस बात की ओर इशारा करता है कि जनता बड़ी पार्टियों से नाखुश है, और पंजाब में खालिस्तान विचारधारा धीरे- धीरे बढ़ रही है।