केंद्र में एनडीए की लगातार तीसरी बार सरकार बनाने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और टीडीपी सुप्रीमो चंद्रबाबू नायडू की भूमिका बढ़ गई है।
दोनों ही दलों ने लोकसभा अध्यक्ष का पद लेने के लिए दबाव बनाने का फैसला किया है। इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी एक रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से इसका खुलासा किया है।
सूत्रों का कहना है कि दोनों पार्टियों ने भाजपा नेतृत्व को पहले ही संकेत दे दिया है कि अध्यक्ष पद गठबंधन के सहयोगियों को दिया जाना चाहिए।
आपको बता दें कि 1990 के दशक के आखिर में जब अटल बिहारी वाजपेयी गठबंधन सरकार की अगुवाई कर रहे थे तब टीडीपी के जीएमसी बालयोगी को लोकसभा अध्यक्ष बनाया गया था।
सूत्रों ने बताया कि दोनों दलों ने यह कदम गठबंधन सहयोगियों को भविष्य में किसी भी संभावित विभाजन से बचाने के लिए उठाया है। दलबदल विरोधी कानून में अध्यक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण होती।
सूत्रों ने बताया कि टीडीपी प्रमुख एन चंद्रबाबू नायडू और जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार ने अध्यक्ष पद के लिए भाजपा के कुछ अन्य सहयोगियों से भी बात की है।
लांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि नायडू और नीतीश कुमार बुधवार को नई दिल्ली में होने वाली एनडीए की बैठक में आधिकारिक तौर पर इस मांग को उठाएंगे या नहीं। दोनों नेताओं के बैठक में शामिल होने की उम्मीद है।
दलबदल के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के पास भी सीमित अधिकार हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं जहां आरोप लगाए गए हैं कि स्पीकर ने अयोग्यता याचिकाओं पर फैसला करने में पक्षपातपूर्ण भूमिका निभाई।
पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उनके विधायकों के खिलाफ दलबदल विरोधी कार्यवाही की सुनवाई और फैसला करने का अंतिम अवसर दिया था। इन याचिकाओं की सुनवाई में देरी से पार्टी में विभाजन हुआ।
लोकसभा के संवैधानिक और औपचारिक प्रमुख अध्यक्ष का पद आमतौर पर सत्तारूढ़ गठबंधन के पास जाता है। उपाध्यक्ष का पद पारंपरिक रूप से विपक्षी दल के सदस्य के पास होता है।
हालांकि, लोकसभा के इतिहास में पहली बार 17वीं लोकसभा उपाध्यक्ष के चुनाव के बिना ही संपन्न हुई।