दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना की मानहानि के मामले दिल्ली की साकेत कोर्ट में गुरुवार को सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर की सजा पर दलीलें पूरी हो गईं।
इस दौरान सक्सेना के वकील ने पाटकर के लिए अधिकतम सजा की मांग करते हुए कहा कि एक मिसाल पेश होनी चाहिए।
LG सक्सेना ने यह केस तब दर्ज कराया था, जब वे गुजरात में एक गैर सरकारी संगठन (NGO) के प्रमुख थे।
मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने इस मामले में 24 मई को पाटकर को भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत आपराधिक मानहानि का दोषी ठहराया था।
शर्मा ने इस मामले में दिल्ली विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) से पीड़ित प्रभाव रिपोर्ट (VIR) भी मांगी है।
यह रिपोर्ट किसी आरोपी के दोषी ठहराए जाने के बाद पीड़ित को हुए नुकसान का आकलन करने के लिए तैयार की जाती है। इस मामले में आगे की कार्यवाही 7 जून को होगी।
सक्सेना के वकील ने अधिकतम सजा की मांग की
गुरुवार की कार्यवाही में बहस के दौरान सक्सेना के वकील ने पाटकर के लिए अधिकतम सजा की मांग करते हुए कहा कि ‘एक उदाहरण स्थापित करने की जरूरत है।’
इस अपराध के लिए अधिकतम दो साल तक की साधारण कैद या जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है।
सक्सेना के वकील ने कोर्ट से कहा कि पाटकर ने साल 2006 में एक ही तरह का अपराध दो बार किया था, साथ ही उन्होंने कोर्ट को बताया कि उस मामले में भी वर्तमान उपराज्यपाल द्वारा दायर एक अन्य मानहानि का मामला भी इसी अदालत में लंबित है।
सक्सेना के वकील ने कहा कि कानून की अवहेलना करने का उनका पिछला रिकॉर्ड रहा है, ऐसे में कार्यकर्ता के खिलाफ परिस्थितियां गंभीर हैं।
जवाब में पाटकर के वकील ने कहा कि बिल्कुल भी गंभीर परिस्थितियां नहीं हैं और न ही वह आदतन अपराधी हैं। वकील ने कहा कि पाटकर की उम्र 70 साल है और वह कई बीमारियों से पीड़ित भी हैं।
इसके बाद कुछ मेडिकल रिकॉर्ड जमा करते हुए पाटकर के वकील ने कहा कि वे 28 राष्ट्रीय पुरस्कार और पांच अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित हो चुकी हैं, जिनमें ‘द राइट लाइवलीहुड अवॉर्ड’ भी शामिल है, जिसे व्यापक रूप से नोबेल पुरस्कार का विकल्प माना जाता है।
आगे उन्होंने कहा, ऐसे में मैं न्यायालय से इन सब बातों पर भी विचार करने का आग्रह करूंगा।
बता दें कि पाटकर और सक्सेना के बीच सन् 2000 से ही यह कानूनी लड़ाई चल रही है, जब पाटकर ने अपने और नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) के खिलाफ विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए सक्सेना के विरुद्ध एक वाद दायर किया था।
वहीं सक्सेना ने एक टीवी चैनल पर उनके (सक्सेना) खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने और प्रेस को मानहानिकारक बयान जारी करने के लिए भी पाटकर के खिलाफ दो मामले दायर किए थे।
अदालत ने इस मामले में 24 मई को पाटकर को दोषी करार देते हुए कहा कि पाटकर ने सक्सेना को कायर बताया था और देशभक्त नहीं होने की बात कही थी, साथ ही हवाला लेन-देन में भी उनकी संलिप्तता का आरोप लगाया था, जो न केवल मानहानिकारक थे, बल्कि उनके बारे में नकारात्मक धारणा बनाने के लिए गढ़े गए थे।