अमरावती लोकसभा सीट महाराष्ट्र की सबसे हॉट सीटों में से एक है। यहां बीते 26 अप्रैल को मतदान हुआ था। भाजपा की तरफ से यहां नवनीत राणा ने चुनाव लड़ा।
इस सीट पर उनका मुख्य मुकाबला कांग्रेस कैंडिडेट बलवंत वानखेड़े से था। अमरावती में नवनीत राणा के लिए रास्ता कैसे साफ हुआ? इसे लेकर शिवसेना के पूर्व सांसद आनंदराव अडसुल का दावा है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने उन्हें इस सीट पर चुनाव नहीं लड़ने के लिए मनाया था।
अमरावती सीट से दो बार सांसद रहे अडसुल का कहना है कि उन्हें राज्यपाल पद की पेशकश की गई थी। हालांकि अडसुल कहते हैं कि इस बार राणा का चुनाव जीतना बहुत मुश्किल है। जनता और पार्टी कार्यकर्ता पिछले पांच साल में उनकी नाटकबाजी और सनसनी समझ चुकी है।
एकनाथ शिंदे गुट के नेता और अमरावती के पूर्व सांसद आनंदराव अडसुल ने कहा, “जब सीटों का बंटवारा हो रहा था, तब अमित शाह ने मुझे बुलाया था।
उन्होंने मुझे अमरावती से चुनाव न लड़ने के लिए कहा। मैंने उनसे कहा कि जिस उम्मीदवार को वे मैदान में उतारने की योजना बना रहे हैं, वह जीत नहीं सकती और उसका कोर्ट केस चल रहा है। शाह ने मुझसे कहा कि वे इसका ध्यान रखेंगे।
राज्यपाल पद का ऑफर मिला
आनंदराव ने आगे कहा कि उन्होंने मुझसे पूछा कि मैं क्या चाहता हूं और फिर मुझे राज्यपाल बनाने की पेशकश की।”
उन्होंने कहा कि इसके बाद उन्होंने चुनाव से हटने का फैसला किया, लेकिन उन्होंने कहा कि पिछले 20 महीनों से महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी उन्हें इसी तरह का आश्वासन दे रखा है।
2019 में नवनीत राणा से हारे थे चुनाव
अडसुल ने 2009 और 2014 में अमरावती लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व किया है। हालांकि 2019 में उन्हें एनसीपी समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार नवनीत राणा से हार का मुंह देखना पड़ा था।
चुनाव जीतने के बाद नवनीत राणा भाजपा में शामिल हो गईं थी। ऐसा बताया जाता है कि अडसुल अमरावती से चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन, भाजपा द्वारा राणा को तरजीह दिए जाने के कारण अडसुल इस सीट से पीछे हट गए।
पांच साल में सिर्फ नाटकबाजी और सनसनी फैलाई
अडसुल ने नवनीत राणा पर निशाना साधते हुए दावा किया कि इस सीट से उनकी जीत मुश्किल है। “मौजूदा भावना नवनीत राणा के खिलाफ है, इसलिए मुझे उनके जीतने की संभावना के बारे में संदेह है।
राणा पिछले पांच सालों से केवल नाटकबाजी और सनसनी फैलाने में लगी हुई हैं, जो लोगों को पसंद नहीं आई। न तो भाजपा कार्यकर्ता और न ही मतदाता उनका समर्थन करते हैं। मुझे यकीन नहीं है कि वह जीत हासिल कर पाएंगी।”
गौरतलब है कि आनंदराव अडसुल, गजानन कीर्तिकर के बाद महा विकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन के पक्ष में बोलने वाले दूसरे शिवसेना नेता हैं।
कीर्तिकर के बयान के बाद शिंदे गुट के नेता और भाजपा नेताओं में नाराजगी सामने आई थी। इसके बाद उनके खिलाफ कार्रवाई की भी मांग उठी थी।
अडसुल ने कीर्तिकर का बचाव किया और कहा कि वह पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं और उन्हें अपने विचार रखने का अधिकार है।