केंद्र में सरकार बनाने के लिए लिए हर दल के लिए सबसे अहम राज्य उत्तर प्रदेश ही है।
यहां लोकसभा की कुल 80 सीटें हैं। इसलिए सभी दल यूपी के समीकरण को दुरुस्त करके ही मैदान में उतरना चाहती है। यही वजह है कि एक-दूसरे की अक्सर खिलाफत करने वाली कांग्रेस और सपा ने अंतिम मौके पर गठबंधन किया।
बीजेपी की बात करें तो लोकसभा चुनावों में बड़ा लक्ष्य लेकर चल रही है। भगवा पार्टी ने देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में अभी तक की सबसे बड़ी जीत की तैयारी कर रखी है।
पार्टी ने उम्मीदवार तय करने में सभी सामाजिक व राजनीतिक समीकरणों को साधा है और मजबूत गठबंधन भी तैयार किया है।
राज्य की 80 सीटों में भाजपा खुद 75 सीटों पर पांच सीटों पर सहयोगी रालोद (तीन) व अपना दल (दो) सीटों पर चुनाव लड़ रहा है।
जाति समीकरण साधने की कोशिश
भाजपा ने उत्तर प्रदेश के अपने सभी उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। भाजपा ने सामाजिक समीकरणों को ध्यान में रखते हुए 34 सीटों पर ही सामान्य वर्ग के उम्मीदवार उतारे हैं, जबकि ओबीसी समुदाय से 25 व अनुसूचित जाति से 16 उम्मीदवार है। इनमें भी जातीय समीकरणों को ध्यान में रखा गया है।
पार्टी ने राजपूत व ब्राह्मण वर्ग से बराबर बराबर 13-13 उम्मीदवार उतारे हैं। ओबीसी में भी सबसे ज्यादा छह कुर्मी, चार लोध, तीन जाट व तीन निषाद व अन्य समुदाय शामिल किए गए हैं। दलित वर्ग में सबसे ज्यादा छह पासी, तीन खटीक वर्ग से उम्मीदवार उतारे गए हैं।
रालोद के साथ आने से फायदा
सूत्रों के अनुसार भाजपा की रणनीति राज्य के सभी प्रमुख समुदायों को साधने की है। इसके अलावा जो समुदाय पूरी तरह से उसके खिलाफ ही जाने हैं उनको पार्टी ने दूर रखा है।
यहां से एक भी मुसलमान को टिकट नहीं दिया गया है। अल्पसंख्यकों में एक सिख व एक पारसी समुदाय से है। भाजपा ने राज्य में अपने गठबंधन को भी मजबूत किया है।
उसके साथ रालोद, अपना दल, सुभासपा व निषाद पार्टी हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस व सपा का इंडिया गठबंधन है। बसपा अलग चुनाव लड़ रही है।
सूत्रों के अनुसार इस बार कई सीटों पर बसपा हार जीत में बड़ा फैक्टर हो सकती है। इससे किसे लाभ मिलेगा, साफ नहीं है, लेकिन भाजपा का मानना है कि वह ज्यादा लाभ में रहेगी।
पिछले चुनाव में सपा व बसपा मिल कर लड़े थे। तब भाजपा 62 सीटें ही जीत पाई थी। भाजपा जानती है कि उत्तर प्रदेश की बड़ी लीड बहुमत के साथ उसके अपने लोकसभा के लक्ष्य 370 के पास उसे ले जाने के लिए बहुत जरूरी है।
इसलिए वह यहां पर एक-एक सीट को जीतने के लिए वहां के सामाजिक समीकरणों को जोड़ने में लगी है। चुनाव अभियान व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तावड़तोड़ रैली व रोड शो अलग से हैं।