कांग्रेस पार्टी ने आज सुबह आखिरकार अमेठी और रायबरेली को लेकर जारी अटकलों पर विराम लगा दिया।
दोनों ही सीटों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा कर दी गई। पार्टी ने अपने पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को अमेठी की जगह रायबरेली सीट से उम्मीदवार बनाया है।
वहीं, अमेठी से गांधी परिवार के करीबी केएल शर्मा को चुनावी मैदान में उतारा है।
आपको बता दें कि दोनों ही सीट गांधी परिवार का गढ़ रहा है, लेकिन 2019 की लड़ाई में राहुल गांधी को बीजेपी की फायरब्रांड नेता और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के हाथों हार का सामना करना पड़ा था।
कांग्रेस के कार्यकर्ताओं सहित सियासी पंडितों को इस लिस्ट का अधिक इंतजार इसलिए भी था, क्योंकि प्रियंका गांधी के भी चुनावी राजनीति में कूदने की चर्चा थी।
करीब 25 साल बाद होगा जब कोई गांधी अमेठी से चुनावी मैदान में नहीं होगा। कांग्रेस अध्यक्ष बनने के एक साल बाद 1999 में सोनिया गांधी ने यहीं से चुनावी शुरुआत की थी। 2004 में वह रायबरेली शिफ्ट हो गईं, और राहुल गांधी को यहां से चुनाव लड़ाया गया।
पार्टी नेताओं के मुताबिक, राहुल के रायबरेली शिफ्ट होने के पीछे मुख्य कारण यह है कि 2019 की हार के बाद अमेठी अब पारिवारिक सीट नहीं रह गई है।
राहुल गांधी के रायबरेली सीट से चुनाव लड़ने के पीछे एक और यह तर्क है कि वायनाड और अमेठी दोनों ही सीटों पर जीत हासिल करने की स्थिति में राहुल गांधी रायबरेली से अपने परिवार का लंबे समय तक संबंध का हवाला देते हुए वायनाड को छोड़ना आसान होगा।
शुरुआत में कहा गया था कि राहुल और प्रियंका गांधी यूपी की इन सीटों से मैदान में उतरने को लेकर अनिच्छुक थे। राहुल ने तर्क दिया कि अगर केरल की सीट पर उन्हें जीत मिली तो वह रायबरेली जीतने की स्थिति में वायनाड नहीं छोड़ सकते हैं।
इस बात की भी आशंका थी कि इसका असर केरल में 2026 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की संभावनाओं पर पड़ सकता है।
प्रियंका को क्यों नहीं उतारा?
सूत्रों का कहना है कि प्रियंका गांधी को भी चुनाव लड़ने के लिए कहा गया, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया।
सूत्रों ने बताया कि पार्टी में इस बात को लेकर आम राय थी कि गांधी परिवार के हिंदी पट्टी से चुनाव नहीं लड़ने से खराब राजनीतिक संदेश जाएगा। इसके बाद राहुल गांधी आखिरकार रायबरेली से चुनाव लड़ने के लिए तैयार हुए।
कांग्रेस से पहले रायबरेली सीट के लिए बीजेपी ने अपने कैंडिडेट की घोषणा कर दी थी। उत्तर प्रदेश के मंत्री दिनेश प्रताप सिंह को रायबरेली से उम्मीदवार घोषित किया गया है।
वहीं, समृति ईरानी पहले ही अमेठी से अपना नामांकन दाखिल कर चुकी हैं। 2019 में भी डीपी सिंह ने रायबरेली से चुनाव लड़ा था। हालांकि वह सोनिया से हार गए थे। हालांकि, 2014 की तुलना में उनके वोट में इजाफा हुआ।
एक कारण यह है कि कांग्रेस नहीं चाहती थी कि प्रियंका और राहुल दोनों चुनाव लड़ें, क्योंकि सोनिया पहले से ही राज्यसभा सदस्य हैं।
राहुल और प्रियंका दोनों के जीतने की स्थिति में संसद में गांधी परिवार के तीन सासंद होंगे। ऐसी स्थिति में भाजपा और खासकर पीएम मोदी कांग्रेस पर वंशवाद को लेकर तीखे वार कर सकते हैं।
आज़ादी के बाद से कांग्रेस ने अमेठी और रायबरेली केवल तीन बार ही हारी है। 1977 में आपातकाल के बाद हुए चुनावों में इंदिरा गांधी रायबरेली से राज नारायण से हार गईं।
1996 और 1998 के आम चुनावों में कांग्रेस फिर से यह सीट हार गई जब कोई गांधी मैदान में नहीं था। हालांकि, तब से यह वहां पराजित नहीं हुआ है। इसी तरह कांग्रेस 1977, 1998 और 2019 में अमेठी में हार गई। 2019 में अमेठी से दो बार के सांसद राहुल गांधी 55,000 से अधिक वोटों से हार गए।
फ़िरोज़ गांधी ने 1952 और 1957 में रायबरेली का प्रतिनिधित्व किया था। हालांकि इंदिरा ने 1964 में राज्यसभा सदस्य के रूप में संसद में प्रवेश किया, लेकिन उनकी लोकसभा की शुरुआत 1967 में रायबरेली से हुई थी।
1977 में हारने से पहले उन्होंने 1971 में फिर से सीट जीती। 1980 में इंदिरा ने अविभाजित आंध्र प्रदेश में रायबरेली और मेडक दोनों से चुनाव लड़ा। दोनों में जीत हासिल की और मेडक सीट बरकरार रखने का फैसला किया।
परिवार का अमेठी से जुड़ाव 1980 में शुरू हुआ, जब संजय गांधी ने पहली बार चुनावी मैदान में उतरकर इस सीट से संसद में प्रवेश किया।
संजय की मृत्यु के बाद, राजीव गांधी ने 1981 में अमेठी से चुनावी शुरुआत की। 1991 में अपनी मृत्यु तक इस सीट पर बने रहे।