सुप्रीम कोर्ट द्वारा इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर आए फैसले के बाद सरकार इसके विभिन्न पहलुओं को देखने में जुटी है।
सरकार की तरफ से कहा गया है कि वह अभी इस फैसले का अध्ययन कर रही है। बताया जा रहा है कि सरकार ऐसा कोई भी कदम नहीं उठाएगी, जो शीर्ष अदालत के फैसले के खिलाफ जाता हो।
इस मामले में सरकार दिसंबर में पास हुए चुनाव आयोग से जुड़े बिल का भी ध्यान रख रही है। बता दें कि उस वक्त विपक्ष के बहुत सारे सदस्य निलंबित थे और सरकार ने चुनाव आयोग की सदस्यों की नियुक्ति से जुड़ा बिल पास करा लिया था।
सरकार की चिंता
सरकार ब्लैक मनी को लेकर भी चिंतित है। परेशानी इस बात को लेकर भी है कि डोनर्स की पहचान जाहिर करना बैंकिंग कानूनों के खिलाफ है।
गौरतलब है कि कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए डोनेशन देने वालों की पहचान जाहिर करने का निर्देश दिया है। एनडीटीवी के मुताबिक सूत्रों ने बताया कि चुनावी बॉन्ड 2017 से पहले काले धन की मात्रा को कम करने के लिए लाए गए थे।
साथ ही इनका मकसद राजनीतिक चंदे को संदिग्ध हालात से एक बेहतर सिस्टम की ओर ले जाना था। सूत्रों के मुताबिक दूसरा मॉडल ऐसा था जिसके तहत ट्रस्ट कंपनियों और व्यक्तियों द्वारा मिले पैसे को राजनीतिक दलों को बांटते हैं।
अतीत में इसको लेकर भी स्टडी की गई थी, लेकिन इसकी चुनौतियां बहुत अधिक थीं। चुनावी बॉन्ड स्कीम डोनर्स की आसानी के लिए लाई गई थी।
भाजपा की प्रतिक्रिया
यह चीजें शीर्ष भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद की प्रतिक्रिया के बाद आई हैं। रविशंकर प्रसाद ने कहाकि यह बॉन्ड उनकी पार्टी द्वारा चुनावों को पारदर्शी बनाने की प्रक्रिया के तहत लाए गए थे।
हालांकि उन्होंने अदालत के फैसले का सम्मान करने की बात भी कही। हालांकि उन्होंने यह भी कहा है कि कोर्ट के सैकड़ों पेज के आदेश को पढ़ने के बाद ही वह इस फिर से टिप्पणी करेंगे।
रविशंकर प्रसाद ने यह भी कहाकि फैसले का विस्तृत अध्ययन करने के बाद ही भाजपा इसको लेकर अगला कदम उठाएगी।
क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला
गौरतलब है कि गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए चुनावी बॉन्ड स्कीम को रद्द कर दिया था। कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहाकि काले धन पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से सूचना के अधिकार का उल्लंघन उचित नहीं है।
साथ ही उसने यह भी कहाकि चुनावी बॉन्ड योजना सूचना के अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन है। बता दें कि चुनावी बॉन्ड राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाने के लिए राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले नकद चंदे के विकल्प के रूप में 2018 में लाया गया था। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को केंद्र सरकार के लिए झटके के तौर पर माना जा रहा है।