पिछले कुछ वक्त से डिजीज एक्स नाम की एक बीमारी काफी चर्चा में है।
इसको लेकर बड़े पैमाने पर चिंता जताई जा रही है। विशेषज्ञों द्वारा इस बीमारी को कोरोना से 20 गुना घातक बताया गया है। अब डब्लूएचओ भी इस बीमारी को गंभीरता से ले रहा है।
स्विटजरलैंड के दावोस में इस हफ्ते होने वाली वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की बैठक के एजेंडे में एक्स डिजीज भी शामिल हो गई है।
डब्लूएचओ निदेशक घेब्रेयेसेस अन्य स्वास्थ्य अधिकारियों के साथ इस पर बातचीत करेंगे। अभी तक इस बीमारी के वजहों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई है। इसके बावजूद इसे आने वाले समय के लिए काफी घातक माना जा रहा है।
पैनल में होगी चर्चा
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने साल 2017 में ही इस बीमारी को निगरानी सूची में डाल दिया था। सार्स और इबोला के साथ एक्स के ऊपर भी परीक्षण किए जा रहे थे।
डब्लूएचओ ने इस अपनी टॉप प्रियॉरिटी पर रखा था। इसे डिजीज एक्स नाम भी इसीलिए दिया गया है क्योंकि अभी तक इस बीमारी की वजहों आदि के बारे में कुछ ठोस जानकारी नहीं मिली है।
दावोस में डब्लूएचओ चीफ जिन लोगों के साथ इस बीमारी पर बैठक करेंगे उनमें ब्राजील के स्वास्थ्य मंत्री निसिया त्रिनिदाद लीमा, फार्मास्युटिकल दिग्गज एस्ट्राजेनेका के बोर्ड के अध्यक्ष मिशेल डेमारे, रॉयल फिलिप्स के सीईओ रॉय जैकब्स और भारत के अपोलो हॉस्पिटल की कार्यकारी उपाध्यक्ष प्रीता रेड्डी भी शामिल होंगी।
डॉक्टर घेब्रेयेसेस इन सबके साथ बुधवार को ‘प्रिपेयरिंग फॉर डिजीज एक्स’ में पैनल का नेतृत्व करेंगे।
बैठक के क्या मायने
डब्ल्यूईएफ ने कहा कि अगर दुनिया को अधिक घातक महामारी से बचाना है तो तैयार रहने की जरूरत है। इसके लिए आने वाली चुनौतियों को देखते हुए स्वास्थ्य प्रणालियों को बेहतर करना होगा।
इसके लिए नए जरूरी कोशिशें पर भी बात होगी। अब टीके, दवा और टेस्ट के साथ-साथ प्लेटफॉर्म टेक्नोलॉजी को डेवलप करने के यह बैठकें हो रही हैं।
असल में वन्यजीवों में वायरस के विशाल भंडार हैं। यह इंसानी स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक हो सकता है। क्योंकि इस वायरस के जानवरों से इंसान में फैलने का डर है।
कब से है इस पर निगाह
डब्लूएचओ ने यह भी बताया है कि इस बीमारी पर कब से निगाह है। इसके मुताबिक 2014 से 2016 के बीच वेस्ट अफ्रीका में इबोला महामारी फैली थी।
इसी दौरान कुछ शोध किया गया था जो एक्स बीमारी के दौरान भी काम आएगी। उन्होंने कहा कि इबोला के चलते हमने 11 हजार लोगों की जिंदगी खो दी थी।
अगर वक्त रहते सही कदम उठाने में सक्षम होते तो लोगों की जान बचाई जा सकती थी। इसके बाद ही डब्लूएचओ ने उन बीमारियों को चिन्हित करना शुरू कर दिया जो भविष्य में खतरा हो सकती हैं।