क्या है असम का ‘जल्लीकट्टू’, जिसमें होती है भैंसों की लड़ाई; 9 साल बाद हुआ आयोजन…

तमिलनाडु में जिस तरह जल्लीकट्टू को लेकर लोगों में उत्साह रहता है कुछ वैसा ही क्रेज असम में मोह जुजू को लेकर रहता है।

हालांकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पिछले 9 साल से इसका आयोजन नहीं हो रहा था। इस बार नागांव के अहोतगुरी में इस खेल का आयोजन किया गया।

इसे देखने असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा और उनकी पत्नी भी पहुंची थीं। कार्यक्रम के बाद सीएम सरमा ने सोशल मीडिया पर इस आयोजन की तारीफ करते हुए कहा कि असम की संस्कृति को बचाने का प्रयास एक बार फिर सफल हुआ है। 

सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में लगाई थी रोक
साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने जल्लीकट्टू और महाराष्ट्र में होने वाली बैलगाड़ी रेस पर रोक लगा दी थी। हालांकि पिछले साल मई में पांच जजों की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने तमिलनाडु, महाराष्ट्र औऱ कर्नाटक सरकार के कानून में संशोधन को बरकार रखा।

इन राज्यों में पशुओं पर क्रूरता अधिनियम में संशोधन किया था। इसके बाद जल्लीकट्टू, कंबाला और बैलगाड़ी रेस जैसे खेलों को अुमति दे दी गई। 

पिछले साल  अक्टूबर में गुवाहाटी हाई कोर्ट ने असम सरकार से कहा कि वह भी अपना रुख स्पष्ट करे। इसपर सरकार की तरफ से कहा गया कि खेल को लेकर एसओपी तैयार की जा रही है।

8 दिसंबर 2023 को कैबिनेट ने भैंसों की लड़ाई के लिए बनी एसओपी को मंजूरी दे दी। इसमें कहा गया था कि आयोजकों को ध्यान रखना होगा कि खेल के दौरान कोई भी जानवर घायल ना हो।

सीएम सरमा ने कहा कि सरकार के निर्देशों के तहत ही इस खेल का आयोजन किया गया। यह बिना किसी को नुकसान पहुंचाए संस्कृति को बचाने का एक सार्थक कदम है। 

कब हुई मोह जुजू की शुरुआत
मुख्यमंत्री के मुताबिक 200 साल पहले 30वें अहोम राजा स्वर्गदेव रद्र ने मोह जुजू की शुरुआत की थी। मोह जुजू के अलावा स्वर्गदेव रूद्र हाथियों और चिड़ियों की लड़ाई भी करवाया करते थे।  

ये आयोजन समाज को साथ लाने के लिए किए जाते थे। नागांव में मंगलवार को इस खेल को देखने के लिए हजारों लोग जुटे थे। इनमें असम के मंत्री पिजूष हजारिका भी शामिल थे। 

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