भारत के इस इलाके में 1947 के बाद पहली बार पहुंची पुलिस, नक्सलियों के गढ़ में घुसे 600 कमांडो…

भारत में लोकतंत्र की स्थापना को 75 साल बीत गए हैं, लेकिन सोमवार को पहली बार देश के एक हिस्से में पुलिस की पहुंच बन पाई।

यह इलाका कोई सुदूर द्वीपीय या तटीय क्षेत्र नहीं है बल्कि महाराष्ट्र के ही गढ़चिरौली जिले का गर्देवाडा है।

नक्सल प्रभावित इस इलाके में आज तक पुलिस की पहुंच नहीं थी। पहली बार यहां एक चौकी बन सकी है।

छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के सीमांत इलाके में स्थित इस जिले में नक्सलियों का बहुत ज्यादा प्रभाव रहा है और सुरक्षा बलों पर यहां भीषण हमले होते रहे हैं।

अब जो चौकी यहां बनी है, वह माओवादियों के गढ़ अबूझमाड़ से महज 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस लिहाज से नक्सलियों से निपटने के मामले में यह चौकी अहम होगी। 

इस पुलिस चौकी की स्थापना के लिए करीब 600 कमांडो गए थे। इस दौरान वे वे लैंडमाइंस और झाड़ियों में नक्सलियों के छिपे होने की आशंका पर भी निगरानी रखते रहे।

इस दुर्गम इलाके में जाकर पुलिस चौकी स्थापित करना इतना कठिन काम था कि इन कमांडोज को 60 किलोमीटर तक पैदल चलकर गर्देवाडा पहुंचना पड़ा।

यही नहीं वहां पहुंचकर करीब 1500 लोगों को काम पर लगाया गया और तेजी से काम करते हुए एक ही दिन में पक्की चौकी बना दी गई। इस परिसर में पुलिसकर्मियों के रहने के लिए भी पर्याप्त सुविधा होगी और वहां मजबूत सुरक्षा व्यवस्था रहेगी। 

यह चौकी रणनीतिक लिहाज से बेहद अहम होगी क्योंकि यह पूर्वी विदर्भ के इटापल्ली तालुका में है, जो अबूझमाड़ के करीब है।

दूसरी तरफ यह छत्तीसगढ़ के कांकेर में स्थित मरबेड़ा पुलिस कैंप से भी 5 ही किलोमीटर की दूरी पर है। इस इलाके को माओवादियों की गुफा के तौर पर जाना जाता रहा है।

यहां नक्सलियों के ट्रेनिंग कैंप रहे हैं। इसके अलावा अपने हथियारों को भी वे यहां छिपाते रहे हैं। इसकी वजह यह है कि वे इस इलाके को अपने लिहाज से बेहगद सुरक्षित मानते हैं क्योंकि सुरक्षाबलों की अब तक यहां पहुंच नहीं थी। 

गरडेवाड़ा 2019 में उस वक्त चर्चा में आया था, जब लोकसभा चुनाव के दौरान माओवादियों ने एक पोलिंग कैंप में अफरातफरी मचा दी थी। यहां माओवाजियों ने तीन ब्लास्ट किए थे।

यहां पर एक बड़ा नाला भी बहता है, जिसमें बरसात के दौरान काफी पानी रहता है। इसके चलते यह इलाका साल में कई महीनों तक शेष हिस्से से कटा हुआ रहता है।

ऐसी स्थिति में माओवादियों के लिए यहां छिपना आसान होता है। कहा जा रहा है कि इस पुलिस चौकी की स्थापना के बाद पुल भी बनाया जाएगा।

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