ओलंपिक पदक विजेता पहलवान बजरंग पूनिया विरोध स्वरूप अपना पद्म पुरस्कार वापस करने वाले पहले व्यक्ति नहीं हैं।
पिछले कुछ वर्षों में कई लोगों ने अपना पद्म सम्मान लौटा दिया है। हालांकि, औरों की तरह बजरंग पुनिया भी पुरस्कार विजेताओं की लिस्ट में बने रहेंगे, क्योंकि इस सम्मानित पुरस्कार को लौटाना के कोई प्रावधान ही नहीं है।
टीओआई ने अपनी एक रिपोर्ट में एक अधिकारी के हवाले से कहा, “पुरस्कार विजेता किसी भी कारण से पुरस्कार वापस करने के अपने फैसले की घोषणा कर सकता है, लेकिन पद्म पुरस्कार में ऐसा नियम नहीं है। बिना कारण बताए केवल राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कारों को रद्द करने की अनुमति मिल सकती है।”
अधिकारी ने आगे कहा, ‘पुरस्कार विजेता का नाम राष्ट्रपति के निर्देशों के तहत बनाए गए पद्म पुरस्कार पाने वालों के रजिस्टर में तब तक बना रहता है, जब तक उसका पुरस्कार रद्द नहीं हो जाता है।’
पद्म पुरस्कार को रद्द करने का कोई इतिहास नहीं है। तत्कालीन गृह राज्य मंत्री किरेन रिजिजू ने 2018 में राज्यसभा को बताया था, “देश की जांच एजेंसियों द्वारा व्यक्तियों के चरित्र के सत्यापन के बाद ही पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं।”
सामान्य प्रथा के अनुसार पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किए जाने के लिए प्रस्तावित व्यक्ति की इच्छा पुरस्कारों की घोषणा से पहले अनौपचारिक रूप से सुनिश्चित की जाती है। कई लोगों ने पहले ही पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया है।
किसी व्यक्ति को पद्म विभूषण, पद्म भूषण या पद्मश्री से अलंकृत किए जाने के बाद उसका नाम भारत के राजपत्र में प्रकाशित किया जाता है और ऐसे लोगों का एक रजिस्टर रखा जाता है।
अधिकारी ने कहा, “भले ही पुरस्कार विजेता बाद में पद्म पुरस्कार वापस करने के लिए स्वेच्छा से आता हों, लेकिन उनका नाम राजपत्र या पुरस्कार विजेताओं के रजिस्टर से नहीं हटाया जाता है।”
पद्म पुरस्कारों की लौटाने की घोषणा करने वालों में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और पूर्व केंद्रीय मंत्री एसएस ढींडसा भी शामिल थे।
उन्होंने 2020 में राष्ट्रपति को पत्र लिखकर कहा कि वे तीन कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों के साथ एकजुटता दिखाते हुए अपने पुरस्कार वापस कर रहे हैं। हालांकि, बादल और ढींडसा का नाम अभी भी पद्म पुरस्कार विजेताओं की सूची में शामिल है।