हमास और इजरायल के बीच जारी जंग में ईरान ने बढ़-चढ़कर हमास का साथ दिया। ईरान ने इस्लामिक देशों को इजरायल के खिलाफ करने बात भी कही थी।
इसके अलावा ईरान दुनिया के सामने इजरायल का हुक्का-पानी बंद करने की भी वकालत कर चुका है।
मगर सवाल है कि आखिर ईरान इजरायल से इतना चिढ़ता क्यों है? इसके पीछे की वजह है विचारधारा और दोनों देशों के धार्मिक मत।
ईरान हमेशा से हमास-इजरायल युद्ध में हमास का साथ देने के साथ-साथ इस्लाम की रक्षा को लेकर को लेकर अपनी बात रख चुका है।
ईरान की सेना इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (आईआरजीसी) इस्लाम की रक्षा के लिए यहूदियों के सफाए की भी बात करती है। जिसकी वजह आईआरजीसी इजरायल पर हमेशा निशाने साधती रही है।
इजरायल से क्यों है इतनी चिढ़?
ब्रिटिश अखबार द सन में छपी एक रिपोर्ट की मानें तो ईरान की सेना आईआरजीसी ऐसे लड़ाकों से भरी है, जिनके में दिमाग में पश्चिम, ईसाइयों और यहूदियों के लिए गहरी और हिंसक नफरत है।
आईआरजीसी की विचारधारा में गहरा यहूदी विरोध है, यही वजह है कि ईरान ने हमास के रूप में अपना हित देखा और इजरायल के खिलाफ खड़े रहे।
आईआरजीसी की तरफ से रंगरूटों की भर्ती के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले ट्रेनिंग के रूल हैं, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि इजरायल को खत्म किया जाना चाहिए।
आईआरजीसी अपने रंगरूटों को ईसाइयों, पारसी और यहूदियों के खिलाफ सशस्त्र जिहाद छेड़ने के लिए सिखा रहा है।
इसके अलावा उन्हें इस बात की भी ट्रेनिंग दी जाती है या तो ऐसे लोग इस्लाम में परिवर्तित होना चाहिए नहीं तो उन्हें मार डाला जाना चाहिए।
ईरान मिटाना चाहता है इजरायल का नामो निशान
आईआरजीसी 7 अक्टूबर के हमलों को इजरायल के साथ लंबे टकराव की शुरुआत के रूप में देखता है, इसका सिद्धांत इजरायल को समय के साथ धीरे-धीरे खत्म करने का है।
ईरान चाहता है कि इजरायल का नामो निशान दुनिया के नक्शे से हमेशा के लिए मिट जाए। विशेषज्ञों का मानना है कि इस राइवलरी से मध्य पूर्व के देश ऐसे तनाव और टकराव की ओर बढ़ रहे हैं, जिसे पहले कभी देखने को नहीं मिला।
पश्चिम द्वारा ईरान पर लगाए गए प्रभावी प्रतिबंध के बदले इसे ईरान का बदला समझा जा सकता है।