इन दिनों उत्तरकाशी की टनल में फंसे मजदूरों का मामला इन दिनों सुर्खियों में है।
इन मजदूरों को बचाने की कवायद पूरी शिद्दत से अंजाम दी जा रही है। उम्मीद है कि बहुत जल्द ही इन सभी को बाहर निकाल लिया जाएगा।
इस बीच एक पुराना मामला ताजा हो उठा है जहां कुछ इसी तरह से 33 मजदूर खदान में फंस गए थे।
इन मजदूरों को 69 दिनों के बाद निकाला जा सका था और इस जटिल अभियान में नासा ने भी मदद पहुंचाई थी। आज भी इस बचाव कार्य के दौरान किए गए प्रयासों की जमकर तारीफ होती है।
साल 2010 का मामला
यह घटना उत्तरी चिली में साल 2010 में हुई थी। तब यहां सोने की खदान में 33 मजदूर फंस गए थे। यह लोग जमीन से 2300 फीट नीचे थे।
हादसा पेश आया था पांच अगस्त 2010 को जब खदान की मुख्य रैंप टूट गई। इसके चलते अंदर के मजदूर अंदर ही रह गए। बचाव के शुरुआती प्रयास नाकाम रहे थे और मजदूरों को बाहर निकालने के लिए तैयार किया जा रहा रास्ता ब्लॉक हो गया।
इसके बाद अंदर फंसे लोगों से कम्यूनिकेशन भी नहीं हो पा रहा था। तभी एक आश्चर्य हुआ। 22 अगस्त को अंदर फंसे मजदूरों ने एक चिट्ठी भेजी और लोगों को पता चला कि वह जिंदा हैं।
नासा और चिली नेवी के एक्सपर्ट
इसके बाद बचाव प्रयासों में तेजी आई। मजदूरों को किसी तरह से पानी और कुछ अन्य हल्के पदार्थ दिए जा रहे थे। बचाव करने वाली टीमें काफी हाई-फाई थीं।
इसमें नासा के एक्सपर्ट तो थे ही, साथ ही चिली नेवी सबमरीन के स्पेशलिस्ट्स भी शामिल थे। इन लोगों ने अंदर फंसे मजदूरों के फिजिकल और साइकोलॉजिकल चुनौतियों को हैंडल किया।
बचाव कार्य के लिए प्लान ए, बी और सी बनाया गया था। तीनों प्लान में ड्रिलिंग करके मजदूरों तक पहुंचने का रास्ता बनाने की बात शामिल थी।
बने थे तीन प्लान
प्लान ए और बी में दो होल बनाने थे। इन्हें छोटे से शुरू करके बड़ा करते जाना था। वहीं, प्लान सी में 1969 फीट की चट्टान और धरती की सतह को काटना शामिल था। इस रेस्क्यू मिशन में जो ड्रिलिंग मशीनें इस्तेमाल में लाई जा रही थीं, वह कोई आम मशीनें नहीं थी।
प्लान ए में रेज बोरर स्ट्राटा 950 का इस्तेमाल हो रहा था, जो खदान में वेंटिलेशन शैफ्ट्स बनाने में इस्तेमाल होती है। प्लान बी में श्रैम टी-130 इस्तेमाल हो रही थी जो आमतौर पर पानी के बोरिंग में इस्तेमाल होती है। इसके अलावा प्लान सी रिग 421 का इस्तेमाल कर रहा था, जो ऑयल ड्रिलिंग करती है।
इतनी रकम जुई थी खर्च
इस बचाव अभियान में कुल करीब 10 से 20 मिलियन डॉलर की रकम खर्च हुई थी। 13 अक्टूबर 2010 को शुरू हुआ यह बचाव अभियान दुनिया के सबसे जटिल रेस्क्यू मिशंस में से एक माना जाता है। सबसे पहले जो मजदूर बाहर लाया गया उसका नाम फ्लोरेंसिको एंटोनियो सिल्वा था।
वहीं,आखिरी मजदूर फोरमैन लुइस अल्बर्टो था। खदान के अंदर 69 दिन गुजारने वाले इन श्रमिकों को उम्मीद और धैर्य का प्रतीक माना गया। बचाव के बाद में कई मजदूरों को भत्ता दिया गया। इनमें से 14 को 540 डॉलर प्रतिमाह के हिसाब से पेंशन दी गई।