चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग 6 साल बाद पहली बार अमेरिका के दौरे पर पहुंचे हैं।
CNN ने अमेरिकी प्रशासन अधिकारियों के हवाले से बताया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन बुधवार को सैन फ्रांसिस्को खाड़ी क्षेत्र में चीनी समकक्ष शी जिनपिंग से मुलाकात करने वाले हैं।
शी का चार दिवसीय दौरा ऐसे वक्त में हो रहा है, जब इजरायल-हमास और यूक्रेन-रूस में दो बड़े युद्ध जारी हैं और दुनिया उस मुद्दे पर दो फाड़ हो चुकी है।
माना जा रहा है कि दुनिया की दो महाशक्तियों का यह महामिलन पश्चिमी एशिया और यूरोप में शांति और सद्भाव की बहाली की दिशा में कारगर हो सकता है।
आर्थिक संकट झेल रहा है चीन
दुनिया की शीर्ष दो अर्थव्यवस्थाओं के नेताओं ने नवंबर 2022 में बाली, इंडोनेशिया में एक अन्य अंतरराष्ट्रीय सभा के मौके पर आखिरी बार मुलाकात के बाद से अब तक बात नहीं की है।
इस बैठक की तारीख तय करने के लिए दोनों सरकारों को कई विवादास्पद मुद्दों से निपटना पड़ा है। इनमें कथित रूप से चीनी जासूसी गुब्बारे का विवाद भी शामिल है।
शी ऐसे समय में अमेरिका संग रिश्तों में नरमी की आस लगाए आ रहे हैं, जब कोविड के बाद चीन की अर्थव्यवस्था लड़खड़ा रही है और शी उसे पुनर्जीवित करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जो अभी तक पूरी तरह से ठीक नहीं हुई है।
इसके अलावा चीन का रियल एस्टेट मार्केट संकट में है और युवा बेरोजगारी रिकॉर्ड लेवल पर है।
चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने बताया कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग चीन-अमेरिका शिखर बैठक और 30वीं एपीईसी आर्थिक नेताओं की बैठक के लिए सैन फ्रांसिस्को पहुंच गए हैं।
दोनों नेताओं की बैठक में इस बात पर चर्चा होने के पूरे आसार हैं कि क्या वैश्विक उथल-पुथल के क्षण में दोनों नेता आपसी संबंधों में तल्खी को धीमा कर सकते हैं। हालाँकि, कथित तौर पर इस बातचीत से दुनिया के दो प्रतिस्पर्धी देशों के द्विपक्षीय संबंधों में नरमी आने की संभावना नहीं है।
इस तथ्य के बावजूद दोनों देश आपसी बातचीत करने को सहमत हुए हैं और दो बड़े नेताओं की बैठक हो रही है। व्हाइट हाउस के सहयोगियों ने इसे महीनों की कोशिश का सकारात्मक नतीजा और संकेत बताया है।
CNN के अनुसार, चूँकि पश्चिम एशिया में संघर्ष जारी है और यूक्रेन में युद्ध चल रहा है, इसलिए जो बाइडेन अपनी निगरानी में एक और विश्व संकट को फैलने से रोकने के लिए उत्सुक हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि बढ़ते वैश्विक तनाव के बीच उनकी शीर्ष विदेश नीति की प्राथमिकताओं में से एक वाशिंगटन-बीजिंग संबंधों में स्थिरता बहाल करना भी है।
किन मुद्दों पर बातचीत के आसार
दोनों नेताओं के बीच विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की उम्मीद है। इनमें दोनों देशों के बीच सैन्य-से-सैन्य संचार बहाल करना भी शामिल है। मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि जो बाइडेन इस मुद्दे पर शी पर दबाव बनाने की योजना बना रहे हैं। इसके अलावा, दोनों नेताओं के बीच इज़रायल और यूक्रेन में संघर्ष, जलवायु परिवर्तन और नशीले पदार्थों की तस्करी का मुकाबला करने जैसे संभावित सहयोग के क्षेत्र, मानवाधिकार के मुद्दों पर गहरी असहमति और दक्षिण चीन सागर और ताइवान के आसपास सैन्य वृद्धि का मुद्दा भी शामिल है।
शी जिनपिंग का एजेंडा
घरेलू मोर्चे पर कई चुनौतियों का सामना करने और अलग-थलग पड़े चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग खुद को जो बाइडेन के मुकाबले मजबूत स्थिति में देख रहे हैं क्योंकि बीजिंग अमेरिका को गहरे राजनीतिक ध्रुवीकरण से ग्रस्त और वैश्विक स्तर पर गिरावट की ओर अग्रसर मान रहे हैं। डेनवर विश्वविद्यालय में चीन-अमेरिका सहयोग केंद्र के निदेशक सुइशेंग झाओ ने हाल के महीनों में अमेरिकी अधिकारियों की बीजिंग यात्राओं का जिक्र करते हुए कहा, “शी को लगता है कि अमेरिका ही चीन के साथ संबंध सुधारना चाहता है क्योंकि अमेरिका ने ही बार-बार प्रतिनिधिमंडलों को उनके पास भेजा है।”
झाओ ने कहा कि बीजिंग का मानना है कि अमेरिका को ही चीन के प्रति अपने रवैये में “सुधार करना चाहिए”। उनकी नज़र में, अगर आप हमारे पास आ रहे हैं और हमसे बात कर रहे हैं, तो आपको हमारी दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिका संग बातचीत में शी जिनपिंग के एजेंडे में लिस्ट में टॉप पर चीनी विनिर्माण पर निर्भरता कम करने के लिए अमेरिकी आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने पर जोर देना, और देश के उच्च तकनीक उद्योगों और उसकी सेना के आधुनिकीकरण के लिए महत्वपूर्ण उन्नत अमेरिकी प्रौद्योगिकी तक चीन की पहुंच को प्रतिबंधित करना है।
इसके अलावा फिलहाल चीन की उन्नत चिप्स की बिक्री पर प्रतिबंध है और चीन में कुछ अमेरिकी तकनीकी निवेशों पर भी प्रतिबंध लगा हुआ है। शी इन मुद्दों पर सकारात्मक समाधान चाहते हैं। शी ताइवान मुद्दे पर भी अमेरिकी नीति में नरमी लाने के लिए बाइडेन पर दबाव डालने की कोशिश में हैं।
सीएनएन की रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिकी अधिकारियों के मुताबिक, दोनों नेताओं के बीच बातचीत व्यापक होगी और कई कामकाजी सत्रों तक चलेगी। इस बीच, अमेरिका ने चीन पर इज़रायल-हमास युद्ध और रूस-यूक्रेन युद्ध दोनों में अधिक रचनात्मक भूमिका निभाने के लिए दबाव डाला है और देश को विश्व मंच पर अपनी भूमिका बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया है।