राजभवन और सरकारों को बीच टकराव कोई नई बात नहीं है।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि राज्यपाल विधानसभा से पास बिलों को ना अटकाएं और उन्हें मंजूरी दें। पंजाब सरकार का कहना था कि उसके विशेष सत्र में पारित किए गए बिलों को राज्यपाल मंजूरी नहीं दे रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपालों को सख्त संदेश दिया था और कहा था कि वे आग से ना खेलें। हालांकि केंद्र की सरकार द्वारा नियुक्त राज्यपालों और राज्य की सरकारों में मतभेद पहले भी चलता रहा है।
2014 से पहले केंद्र में यूपीए की सरकार थी। ऐसे में जिन राज्यों में भाजपा की सरकार थी वहां बिलों को मंजूरी देने में इसी तरह की रुकावट देखी जा रही थी।
गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी को भी कई विधेयक पास करवाने के लिए काफी जद्दोजेहद करनी पड़ी।
मध्य प्रदेश में अटक गए 20 बिल
भाजपा शासित मध्य प्रदेश में 20 विधेयक पास किए गए थे। इसमें से कुछ राजभवन में तो कुछ राष्ट्रपति के पास अटके पड़े थे।
इन विधेयकों में मध्य प्रदेश टेररिजम ऐंड डिसरप्टिव ऐक्टिविटीड कंट्रोल ऑफ ऑर्गनाइज्ड क्राइम ऐक्ट, मध्य प्रदेश विशेष न्यायालय विधेयक और मध्य प्रदेश गौवंश वध प्रतिषेध संशोधन विधेयक शामिल था।
सीएम के रूप में नरेंद्र मोदी और राज्यपाल के बीच भी टकराव
जब पीएम मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब राज्यपाल कमला बेनीवाल के साथ भी इसी तरह की खींचतान देखी जा रही थी। बेनीवाल 2009 से 2014 तक गुजरात की राज्यपाल थीं।
2010 में उन्होंने मतदान अनिवार्य करने वाले विधेयक को लौटा दिया था। इस बिल में स्थानीय निकाय के चुनाव में महिलाओं के 50 फीसदी आरक्षण का भी प्रस्ताव था। राज्य की मोदी सरकार ने कांग्रेस को छकाने का प्लान बनाया था। दोनों बातों को एक ही विधेयक में रखा गया था। कांग्रेस 50 फीसदी महिला आरक्षण के पक्ष में थी लेकिन अनिवार्य वोटिंग के विरोध में थी।
इसके बाद गुजरात कंट्रोल ऑफ टेररिजम ऐंड ऑर्गनाइज्ड क्राइम बिल लटक या। इसके बाद 2011 में बेनीवाल ने लोकायुक्त संशोधन विधेयक को वापस कर दिया।
इसमें स्थानीय निकाय के पदाधिकारियों को लोकायुक्त के दायरे में लाने की बात कही गई थी। एक महीने बाद ही आरए मेहता की नियुक्ति लोकायुक्त के रूप में कर दी गई।
राज्यपाल के फैसले के खिलाफ फिर राज्य सरकार राष्ट्रपति के पास पहुंच गई। 2014 में केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद बेनीवाल का ट्रांसफर मिजोरम कर दिया गया। उनका दो महीने का ही कार्यकाल बचा था। इसके बाद उन्हें हटा दिया गया।
अब गेंद दूसरे पाले में है। केरल, तमिलनाडु, पंजाब और तेलंगाना की सरकारों का आरोप है कि राज्यपाल उनके विधेयक नहीं मंजूर कर रहे हैं। ऐसे में वे कानून नहीं बन पा रहे हैं।
केरल सरकार ने 8 बिल और तमिलनाडु ने 12 बिल्स की बात कही है। तेलंगाना सरकार ने अप्रैल में ही 10 बिलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। वहीं पश्चिम बंगाल के स्पीकर बिमान बनर्जी का दावा है कि 22 बिल राज्यपाल के पास लंबित हैं।