देश के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने अदालत की अवमानना के नियम को लेकर बड़ी बात कही है।
उन्होंने कहा कि अदालत की अवमानना का नियम किसी जज को आलोचना से बचाने के लिए नहीं है बल्कि उसका उद्देश्य अदालत की न्याय प्रक्रिया किसी व्यक्ति के दखल को रोकना है।
एक जज के तौर पर 23 साल और चीफ जस्टिस के पद पर एक साल पूरा करने के मौके पर चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि अदालतों का काम यह सुनिश्चित करना है कि राजनीति अपनी सीमाओं में ही रहे।
उन्होंने अदालत की अवमानना के कानून की व्याख्या करते हुए कहा कि यदि कोई व्यक्ति कोर्ट के फैसले का अपमान करता है या उसके बारे में गलत बात करता है तो यह अवमानना का मसला होगा।
कोई अदालत की कार्यवाही को बाधित करता है या उसके दिए आदेश के पालन में आनाकानी करता है तो उसे भी अवमानना माना जाता है।
टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए इंटरव्यू में उन्होंने साफ किया कि यदि किसी जज के खिलाफ कोई अपनी राय रखता है तो उस मामले में अदालत की अवमानना का केस नहीं बनता।
उन्होंने कहा कि मैं पूरी स्पष्टता के साथ यह मानता हूं कि अवमानना के नियम का इस्तेमाल किसी जज को आलोचना से बचाने के लिए नहीं किया जा सकता। अदालतों और जजों को अपनी प्रतिष्ठा काम और फैसलों से बनानी चाहिए। यह अवमानना के नियम से स्थापित नहीं हो सकती।
जजों की प्रतिष्ठा का निर्धारण तो उनके द्वारा दिए गए फैसलों और कामकाज से होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि अदालतों को मीडिया और नागरिकों से संवाद बनाए रखना चाहिए।
चीफ जस्टिस ने कहा कि कई बार सोशल मीडिया की पोस्ट परेशान करती है और वे बातें भी उनमें जजों के नाम से शेयर की जाती हैं, जो वे कहते भी नहीं।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि ऐसी चीजों से निपटने के लिए यह जरूरी है कि हम ही उचित संवाद रखें। इससे गलत जानकारी देने वाले मंच अपने आप ही कम या खत्म हो जाएंगे।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हमने एक प्रयोग शुरू करने का फैसला लिया है। सुप्रीम कोर्ट की ओर से एक न्यूजलेटर जारी किया जाएगा। इसमें अदालत में हुए फैसलों की जानकारी सीधे जनता को मिलेगी। इससे गलत सूचना देने वाले मंच अपने आप ही खत्म होने लगेंगे। वहीं जनहित याचिकाओं को लेकर भी उन्होंने कहा कि इनके माध्यम से आम लोगों से जुड़े जरूरी मामले उठाए जाते रहे हैं और यह जरूरी चीज है। हालांकि उन्होंने यह भी माना कि कई बार इनका इस्तेमाल राजनीतिक हित साधने या फिर चर्चा पाने के लिए भी होने लगा है।