विदेश मंत्री एस जयशंकर का कहना है कि जिस तरह के घटनाक्रम वैश्विक स्तर पर हो रहे हैं, उसे देखते हुए यह तूफान का दौर लगता है। इससे निपटने के लिए मजबूत नेतृत्व की जरूरत है।
प्रधानमंत्री के विजन की सराहना करते हुए जयशंकर ने कहा कि आज देश समस्याओं को छोड़ता नहीं है। हिन्दुस्तान टाइम्स लीडरशिप समिट 2023 के अंतिम दिन शनिवार को विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा, दुनिया कठिन है और कठिन रहेगी।
इसलिए आज हमें मजबूत नेतृत्व की जरूरत है। तैयारी की जरूरत है, व्यवस्थागत बदलाव की जरूरत है। उन्होंने वैश्विक घटनाओं का हवाला देते हुए कहा, हम एक तूफान के दौर में हैं। इसकी कोई गारंटी नहीं है कि यह बेहतर होगा।
जयशंकर ने पिछले दशक में भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता और आत्मविश्वास में उल्लेखनीय वृद्धि का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि भारत अधिक मुखर हो गया है। चुनौतियों से पीछे हटने की प्रवृत्ति अब नहीं है।
समस्या को नजरंदाज नहीं करते
उन्होंने कहा, हम उस स्तर पर पहुंच गए हैं, जहां समस्या को नजरअंदाज नहीं करते हैं। उदाहरण के लिए, हमने इजराइल, सूडान और यूक्रेन में जो ऑपरेशन किए हैं। जब उस पैमाने की समस्या होती है, तो आज प्रतिक्रिया आगे बढ़ने की होती है।
जयशंकर ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के साथ भारत सरकार द्वारा उठाए गए महत्वपूर्ण कदम की चर्चा की। उन्होंने कहा, इस संवैधानिक परिवर्तन के दूरगामी प्रभाव हुए हैं।
इसने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तरों पर चर्चा को जन्म दिया है। उन्होंने कोविड महामारी के बहुमुखी प्रभावों से निपटने के लिए आवश्यक चुनौतियों और जटिल राजनयिक प्रयासों पर भी प्रकाश डाला।
वैश्विक चुनौती से निपटना साझा जिम्मेदारी
जयशंकर ने कहा कि वैश्विक संकटों के त्वरित और प्राथमिक प्रतिक्रियाकर्ता के रूप में संयुक्त राज्य अमेरिका की पारंपरिक भूमिका परिवर्तन के दौर से गुजर रही है।
यह स्वयं अमेरिका स्वीकार करता है। उनका कहना है कि अपेक्षाओं में बदलाव आया है। इस मान्यता के साथ कि वैश्विक चुनौतियों से निपटने का बोझ राष्ट्रों के बीच एक साझा जिम्मेदारी है।
जयशंकर ने कहा, हम प्रौद्योगिकियों और संचार के आधुनिक साधनों द्वारा सक्षम आतंकवाद के एक अलग स्तर को देख रहे हैं। इससे निपटने के लिए भी अलग-अलग रुख नहीं होना चाहिए।
क्लिंटन युग में संतुलन
जयशंकर ने कहा कि क्लिंटन युग के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका को अधिक अनुकूल भूराजनीतिक स्थिति प्राप्त थी। उस समय अमेरिकी रणनीतिक सोच ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों में संतुलन की आवश्यकता पर कम ध्यान केंद्रित किया।
एक सुरक्षित एकध्रुवीय दुनिया में अमेरिका ने परस्पर स्वीकार्य शर्तों पर भारत के साथ बातचीत करने के मूल्य को पहचाना।
भारत-अमेरिका साझेदारी ज्यादा महत्वाकांक्षी
जयशंकर ने कहा, परमाणु समझौते के युग में और उसके बाद आपके पास अमेरिका है, जो दुनिया को नया आकार देने की कोशिश कर रहा है और दीर्घकालिक नए साझेदारों की तलाश कर रहा है।
हम कई कारणों से एक अलग युग में हैं। हम पहले अनिवार्य रूप से उनके साथ काम करने की बाधाओं को दूर कर रहे थे। अब यह बहुत अधिक महत्वाकांक्षी है।
इसका एक हिस्सा यह है कि भारत की क्षमता बढ़ी है। भारत की बढ़ती भूमिका के मद्देनजर जयशंकर ने इस बात पर जोर दिया कि भारत की भूमिका अमेरिका के साथ अपने संबंधों में बाधाओं को दूर करने से लेकर अधिक महत्वाकांक्षी स्थिति तक विकसित हुई है।
दुनिया को देने के लिए बहुत कुछ
जयशंकर ने कहा, पिछले तीन या चार वर्षों में, एआई डोमेन, चिप में जो चलन में आया है। यदि भारत स्मार्ट विनिर्माण में उतरता है, तो हमारे पास केवल अमेरिका ही नहीं, बल्कि दुनिया को देने के लिए बहुत कुछ है।
अंतरराष्ट्रीय संबंधों में प्रतिस्पर्धा
चीन के संदर्भ में जयशंकर ने इस बात पर जोर दिया कि अंतरराष्ट्रीय संबंध स्वाभाविक रूप से प्रतिस्पर्धी हैं। इस प्रतियोगिता का एक महत्वपूर्ण पहलू इसे कम प्रतिस्पर्धी दिखाने की कला है।
उन्होंने कहा, अंतरराष्ट्रीय संबंध एक मौलिक रूप से प्रतिस्पर्धी अभ्यास है। प्रतिस्पर्धा का हिस्सा अन्य लोगों को यह विश्वास दिलाना है कि यह प्रतिस्पर्धी नहीं है। हमें यह स्वीकार करने से पीछे नहीं हटना चाहिए कि यह कूटनीति या विश्व राजनीति का मूल आधार है।
ज्यादा जागरूक रहने की जरूरत
विदेश मंत्री का कहना है कि भारत को अंतरराष्ट्रीय संबंधों में प्रतिस्पर्धा करने की आवश्यकता के बारे में पूरी तरह से जागरूक होना चाहिए। यह जागरूकता वैश्विक मंच पर प्रभावी प्रतिस्पर्धा के लिए आवश्यक संसाधनों, क्षमताओं और रणनीतियों तक फैली हुई है।
इजराइल-हमास युद्ध का प्रभाव
जयशंकर ने इजराइल-हमास संघर्ष पर कहा यह एक बहुत ही जटिल स्थिति है, जिसमें बहुत सारी संभावनाएं हैं, जो पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हैं।
उन्होंने 7 अक्तूबर को इजरायल पर हमास के हमले को आतंकी हमला बताया। साथ ही इजरायल द्वारा दिए जा रहे जवाब और युद्ध में अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार नियम का ख़्याल रखने और फलस्तीन को स्वतंत्र संप्रभु राष्ट्र बनाए जाने की हिमायत के साथ दोनों देशों के बीच राजनीतिक संवाद की पैरवी का अपना रुख भी दोहराया।
कनाडा के साथ संबंधों पर
कनाडा से विवाद पर जयशंकर ने कहा है कि बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को हिंसा, धमकी या अलगाववादी आंदोलनों को बढ़ावा देने के लाइसेंस के रूप में काम नहीं करना चाहिए।
उन्होंने आतंकवाद का उल्लेख करते हुए कहा, इस समस्या का हमने सामना किया है। हमने ऐसी गतिविधियां देखी हैं, जिन्हें स्वतंत्रता के नाम पर उचित ठहराया गया है।
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