US में राष्ट्रपति उम्मीदवारी की होड़ में 2 भारतवंशी, निक्की हेली और विवेक रामास्वामी में कौन मारेगा बाजी…

अमेरिका में अगले साल राष्ट्रपति चुनाव होना है।

इसके लिए रिपब्लिकन पार्टी की उम्मीदवारी की होड़ में भारतवंशी निक्की हेली और विवेक रामास्वामी एक-दूसरे के सामने कड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं।

दोनों नेताओं के बीच तनाव को नजरअंदाज करना मुश्किल था, जब वे आखिरी बार बहस के मंच पर आमने-सामने थे।

बहस के दौरान हेली ने रामास्वामी से कहा, ‘हर बार जब मैं आपको सुनती हूं, तो आपकी बातों से थोड़ी बेवकूफी झलकती है।’ इस पर रामास्वामी ने कहा, ‘अगर हम यहां बैठकर व्यक्तिगत टीका-टिप्पणी न करें, तो रिपब्लिकन पार्टी में हमारी बेहतर सेवा होगी।’

बाद में रामास्वामी ने कहा कि वह हेली के लिए अगली बार आसान विषय रखेंगे, ताकि उन्हें अपनी राय जाहिर करने में दिक्कत न हो।

दोनों बुधवार को पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी को लेकर तीसरी बहस के लिए फिर से आमने-सामने होंगे। अगले साल रिपब्लिकन पार्टी में प्राइमरी चुनाव के लिए मतदान शुरू होगा।

इससे पहले बड़े दर्शकों के सामने अपना पक्ष रखने के यह उनके पास अंतिम अवसरों में से एक होगा।

हेली और रामास्वामी 2024 के लिए नामांकन की दौड़ में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से बहुत पीछे हैं, लेकिन दोनों नेता भारतीय मूल के अमेरिकियों के बढ़ते राजनीतिक प्रभाव का प्रतिनिधित्व करते हैं और भारतीय प्रवासियों के भिन्न विचारों की याद दिलाते हैं।

रामास्वामी को विश्व मामलों में गैर-अनुभवी बताया 
हेली और रामास्वामी भारतीय-अमेरिकियों के बीच विचारों की विविधता का उदाहरण हैं। दक्षिण कैरोलाइना की पूर्व गवर्नर और बाद में संयुक्त राष्ट्र की राजदूत रह चुकीं हेली आम तौर पर पार्टी के पारंपरिक रुख के साथ जुड़ी दिखती हैं, खासकर जब विदेश नीति की बात आती है।

51 वर्षीय हेली ने रूस के साथ युद्ध में यूक्रेन के लिए निरंतर समर्थन का आह्वान किया है। 38 वर्षीय रामास्वामी को विश्व मामलों में गैर-अनुभवी करार दिया है। वहीं, बायोटेक उद्यमी रामास्वामी ने रिपब्लिकन पार्टी के रुख आलोचना की है और यूक्रेन को समर्थन जारी रखने की आवश्यकता पर सवाल उठाया है।

हेली और रामास्वामी के बीच कड़ा मुकाबला
‘प्यू रिसर्च सेंटर’ के एक हालिया सर्वेक्षण में पाया गया कि 68 प्रतिशत भारतीय-अमेरिकी पंजीकृत मतदाताओं की पहचान डेमोक्रेट के रूप में और 29 प्रतिशत की पहचान रिपब्लिकन के रूप में हुई है।

ऐसा हो सकता है कि रिपब्लिकन अमेरिका में भारतीय प्रवासियों के बीच जीत हासिल करने की कगार पर न हों, लेकिन करीबी मुकाबले वाले राज्यों में मामूली लाभ भी उल्लेखनीय हो सकता है।

प्रवासी भारतीयों के कई ऐसे वर्ग हैं, जो अभी भी भारतीय राजनीति से संबंधित समर्थन, वित्तपोषण और वकालत में लगे हुए हैं। अमेरिकन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल सर्विस की स्कॉलर-इन-स्कॉलर मैना चावला सिंह ने कहा, ‘ज्यादातर भारतीय-अमेरिकियों के लिए राज्य के मुद्दे ज्यादा मायने रखते हैं।’

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