सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दुष्कर्म का झूठा आरोप, आरोपी के लिए समान रूप से कष्ट, अपमान और नुकसान का कारण बन सकता है।
दुष्कर्म के मामले में आरोपी को बरी करते हुए शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी की। शीर्ष न्यायालय में मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति सीटी रवि कुमार की पीठ कर रही थी।
बेंच ने ने पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल अपील को स्वीकार करते हुए यह फैसला दिया। हाईकोर्ट ने दुष्कर्म के मामले में आरोपी को निचली अदालत द्वारा दोषी ठहराने और सात साल कैद की सजा दिए जाने को सही ठहराया था।
बयान के मूल्यांकन में सावधानी बरतें अदालतें
अदालत ने कहा कि चूंकि दुष्कर्म के मामले में आरोपी को पीड़िता के बयान के आधार पर दोषी ठहराया जा सकता है, इसलिए अदालतों को उसके (पीड़िता) बयान का मूल्यांकन करते समय अधिक सावधानी और सतर्कता बरतनी चाहिए।
हालांकि शीर्ष अदालत ने साफ किया कि पीड़िता के बयान पर आम तौर पर भरोसा किया जाना चाहिए और उस पर संदेह नहीं करना चाहिए। पीठ ने यह भी कहा कि लेकिन इसे यौन उत्पीड़न के हर मामले में यांत्रिक तरीके से लागू नहीं किया जाना चाहिए।
23 साल पुराने मामले में आरोपी बरी
यह टिप्पणी करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने करीब 23 साल इस पुराने मामले में साक्ष्यों का विश्लेषण करने के बाद आरोपी मानक चंद को बरी कर दिया।
उसके खिलाफ वर्ष 2000 में दुष्कर्म का मामला दर्ज किया गया था और निचली अदालत ने 2001 में उसे दोषी ठहराते हुए सात साल कैद की सजा सुनाई थी। मामले में हाईकोर्ट ने वर्ष 2014 में निचली अदालत के फैसले को बहाल रखा था।