इजरायल और हमास के बीच जारी संघर्ष को लेकर दुनिया एक बार फिर से दो हिस्सों में बंटती नजर आ रही है।
रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि इससे आने वाले समय में बेहद चुनौतीपूर्ण स्थितियां विश्व के सामने खड़ी हो सकती हैं। इस समस्या से निपटने के लिए सभी देशों को आगे बढ़कर फलस्तीन विवाद का समाधान निकालने में मदद करनी होगी।
विशेषज्ञों के अनुसार, इस संघर्ष के कई संदेश मिले हैं। सबसे पहले यह इजराइल की अपनी सुरक्षा चूक को दर्शाता है।
इसी प्रकार का हमला इजरायल पर 1973 में भी हुआ था फिर भी यह चूक हुई। लेकिन हमला यह भी बताता है कि हमास पहले की तुलना में ज्यादा कट्टर हुआ है।
तीसरे, करीब-करीब सभी इस्लामिक देश जिस प्रकार से हमास के पक्ष में खड़े नजर आते हैं, वह सर्वाधिक चिंताजनक है। इससे समूचे विश्व में कट्टरपंथी समूहों को उकसावा मिलेगा। भारत को भी इस दिशा में सीमा पार से सक्रिय ऐसे समूहों को लेकर विशेष सतर्कता बरतनी होगी।
रक्षा विशेषज्ञ लेफ्टिनेंट जनरल राजेंद्र सिंह ने कहा कि इजरायल-हमास संघर्ष में अमेरिका एवं यूरोप जहां पूरी मजबूती से इजरायल के साथ खड़े हैं, वहीं इस्लामिक देशों ने मौजूदा स्थिति के लिए फलस्तीन पर दशकों से इजरायल के अवैध कब्जे को जिम्मेदार ठहराकर परोक्ष रूप से हमास की कार्रवाई का समर्थन किया है। यह भी स्पष्ट है कि ईरान, कतर, सीरिया, लेबनान, मिस्र आदि देश सीधे-सीधे हमास को हर तरीके का समर्थन भी दे रहे हैं। इसलिए जंग का दायरा आने वाले समय में बढ़ भी सकता है।
विशेषज्ञों की मानें तो इजरायल-हमास संघर्ष रूस-यूक्रेन संघर्ष की तुलना में बहुत बड़ा और खतरनाक है। पूरी दुनिया का केंद्र आने वाले समय में इसी संघर्ष पर केंद्रित रहने वाला है। अमेरिका और यूरोप के इस तरफ केंद्रित रहने से यूक्रेन को मदद में कमी आ सकती है। यानी रूस के साथ संघर्ष में यूक्रेन की स्थिति कमजोर पड़ेगी। इस प्रकार पश्चिमी देशों का इजरायल की तरफ फंसे रहना रूस के लिए फायदेमंद है।
इस मामले में चीन का रुख अभी स्पष्ट नहीं है। वह वेट एंड वॉच की स्थिति में है। लेकिन चीन चूंकि रूस के साथ कदमताल कर रहा है, इसलिए उसके रूस के साथ खड़े होने की संभावना ज्यादा है। रूस-यूक्रेन युद्ध में भी ज्यादातर इस्लामिक देश रूस के साथ खड़े थे। इस प्रकार रूस-यूक्रेन युद्ध पर दो ध्रुवों में बंटी दुनिया के बीच इजरायल-हमास संघर्ष ने विभाजन और बढ़ा दिया है।