31 साल पुराने केस में 18 आदिवासी महिलओं को इंसाफ देते हुए मद्रास हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया है।
शुक्रवार को हाई कोर्ट ने 269 सरकारी अधिकारियों की सजा की पुष्टि की जिन्होंने चंदन तस्करों की तलाश में तमिलनाडु के धर्मपुरी जिले के वाचथी आदिवासी गांव पर छापा मारा था और बहाने से वहां की निवासी महिलाओं के साथ क्रूरता की थी।
इस केस के तहत 17 आरोपियों को 18 महिलाओं के बलात्कार का दोषी ठहराया गया था जिनमें से एक उस समय आठ महीने की गर्भवती थी और दूसरी 13 साल की नाबालिग थी।
मुकदमे के दौरान 50 से अधिक अभियुक्तों की मृत्यु भी हो ची है। बाकी को 2011 में सत्र अदालत ने एक से 10 साल की कैद की सजा सुनाई थी।
मद्रास हाई कोर्ट ने सभी दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए कहा, “वास्तविक तस्करों बचाने के लिए अधिकारियों ने एक साजिश रची।
बड़े स्तर पर नाटक रचा गया जिसमें निर्दोष आदिवासी महिलाएं प्रभावित हुईं… उनके द्वारा झेले गए दर्द और कठिनाइयों की भरपाई पैसे और नौकरियों के रूप में की जानी चाहिए।”
2016 में एक खंडपीठ के आदेश के मुताबिक न्यायमूर्ति पी वेलमुरुगन ने तमिलनाडु सरकार को यह भी आदेश दिया कि 18 महिलाओं में से प्रत्येक को 10 लाख रुपये का मुआवजा तुरंत जारी किया जाए और बलात्कार के दोषी अभियुक्तों से 50% राशि वसूल की जाए।
राज्य को 18 महिलाओं या उनके परिवार के सदस्यों को उपयुक्त स्वरोजगार या स्थायी नौकरी प्रदान करने का भी निर्देश दिया गया। न्यायाधीश ने कहा, “राज्य इस घटना के बाद वाचथी गांव में आजीविका और जीवन स्तर में सुधार के लिए किए गए उपायों पर अदालत को रिपोर्ट देगा।”
होगी तत्कालीन अधिकारियों पर भी कड़ी कार्रवाई
न्यायमूर्ति वेलमुरुगन ने अपराध के खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रहे तमिलनाडु के तत्कालीन जिला कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक और जिला वन अधिकारी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का निर्देश दिया। उन्होंने कहा कि गवाहों के साक्ष्य से यह स्पष्ट है कि असली अपराधी कौन थे, लेकिन उन्होंने उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की और असली दोषियों को बचाने के लिए निर्दोष ग्रामीणों को प्रताड़ित किया गया।
सीबीआई कर रही थीं जांच
जून 1992 में वन अधिकारी कथित चंदन तस्करी मामले की जांच के लिए गांव गए थे और पूछताछ की आड़ में अपराध को अंजाम दिया। जांच सीबीआई को सौंपी गई। सीबीआई ने भारतीय वन सेवा के चार अधिकारियों समेत 269 लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया।