1996, 1998, 2008 और 2010 में भी महिला आरक्षण विधेयक पेश किए गए थे लेकिन हर बार सामाजिक न्याय की पक्षधर राजनीतिक पार्टियों, जिन्हें मंडल समर्थक दल भी कहा जाता है, ने इसका पुरजोर विरोध किया और कोटा के अंदर कोटा की मांग की।
यानी महिलाओं के लिए लोकसभा और विधानसभाओं में 33 फीसदी सीटें आरक्षित करने वाले कानून में एससी-एसटी और ओबीसी कैटगरी की महिलाओं के लिए भी आरक्षण देने की मांग की।
राजद, जेडीयू, समाजवादी पार्टी समेत कुछ और दलों ने इस मांग के समर्थन में संसद के अंदर से लेकर बाहर तक खूब हंगामा किया।
इस वजह से महिला आरक्षण बिल संसद से पारित नहीं हो सका और यह 27 सालों से लटका पड़ा है। इस बिल को पास कराने की पहली कोशिश 1996 में एचडी देवगौड़ा की सरकार में हुई थी।
उमा भारती ने भी किया था विरोध
जब ये बिल पहली बार 12 सितंबर 1996 को प्रधान मंत्री एचडी देवेगौड़ा द्वारा पेश किया गया था, तो भाजपा सांसद उमा भारती ने ओबीसी महिलाओं के लिए आरक्षण का मुद्दा उठाया था।
इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के सांसद ई अहमद ने भी राज्यसभा में महिला आरक्षण के प्रावधान पर स्पष्टीकरण मांगा था।
राजनीतिक दलों के जोरदार विरोध प्रदर्शन को देखते हुए तब प्रधानमंत्री देवगौड़ा को सर्वदलीय बैठक बुलाने पर मजबूर होना पड़ा था।
साल 2008 में जब मनमोहन सिंह की सरकार में इस बिल को पेश करना था, तब राज्यसभा में कांग्रेस की महिला सांसदों की किलेबंदी में तत्कालीन कानून मंत्री हंसराज भारद्वाज को बिल पेश करना पड़ा था।
6 मई, 2008 को राज्यसभा में 108वां संविधान संशोधन विधेयक पेश किया जाना था। तब सरकार को राजद, जेडीयू और सपा जैसी पार्टियों के विरोध की आशंका के मद्देनजर सदन में अभूतपूर्व प्रबंधन करना पड़ा था।
सरकार को डर था कि कहीं कानून मंत्री पर विरोध करने वाले सांसद हमला न बोल दें, इसलिए उन्हें महिला सांसदों के बीच में बैठाया गया था।
कौन-कौन दे रही थीं पहरा:
बिल पेश करने की पहली कोशिश में दूसरे दलों के सांसदों द्वारा विधेयक की कॉपी छीन लेने के बाद कानून मंत्री सदन में पहली पंक्ति में नहीं बैठे।
वह पीछे की पंक्ति में बैठकर महिला सांसदों से घिरे हुए थे। कानून मंत्री कैबिनेट सहयोगियों अंबिका सोनी और कुमारी शैलजा के बीच बैठे थे।
गलियारे की तरफ वाली सीट पर दोनों ओर से दूसरी कैबिनेट सहयोगी रेणुका चौधरी और कांग्रेस सांसद जयंती नटराजन और अलका बलराम क्षत्रिय पहरा दे रही थीं।
मंत्री की सांसद से हाथापाई
जैसे ही भारद्वाज बिल पेश करने के लिए उठे, समाजवादी पार्टी के सांसद अबू आसिम आजमी उनके हाथ से कॉपी छीनने के लिए आगे बढ़े।
सपा सांसद को आगे आता देख केंद्रीय मंत्री रेणुका चौधरी कूद पड़ीं और उनसे हाथापाई होने लगी।
इसी बीच भारद्वाज ने विधेयक पेश कर दिया और सदन के उपसभापति पीजे कुरियन ने बिल को स्थायी समिति को भेज दिया। इसके बाद किसी तरह के हंगामे की आशंका से बचने के लिए सदन की कार्यवाही तुरंत स्थगित कर दी गई थी।
2010 में भी नाटकीय था घटनाक्रम:
दो साल बाद 2010 में जब ये विधेयक राज्यसभा में पारित हुआ, तब भी सदन में खूब हंगामा हुआ।
नाटकीय घटनाक्रम में राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी को विरोध कर रहे सपा और राजद के सांसदों को सदन से बाहर करने के लिए मार्शलों को बुलाना पड़ा था।
इससे पहले सदन में कॉपी फाड़ी गई थी, सभापति के माइक तोड़ने की कोशिश हुई थी और पेपर के गोले उन पर उछाले गए थे।