कलकत्ता हाईकोर्ट की जलपाईगुड़ी बेंच का कहना है कि अगर महिला या लड़की अपनी मर्जी से भी आरोपी के साथ जाती है, तो भी उसे बलात्कार का अधिकार नहीं मिल जाता है।
रेप केस की सुनवाई कर रही कोर्ट ने दोषसिद्धि को बरकरार रखा। मामला 2007 का है, जहां एक शख्स पर लड़की का अपहरण कर बलात्कार करने के आरोप लगे थे। कोर्ट ने दोषी की सजा को 7 साल से कम कर 4 साल कर दिया है।
आरोपी का कहा था कि पीड़िता का अपहरण नहीं किया गया था, बल्कि वह खुद ही अपनी मर्जी से माता-पिता का घर छोड़कर आई थी।
इसपर कोर्ट ने कहा, ‘अगर हम शिकायतकर्ता (पीड़िता के पिता) के बयान पर जाएं और यह भी मान लें कि पीड़िता को अगवा नहीं किया गया था, वह अपनी मर्जी से आरोपी के साथ गई थी।
इसका मतलब यह नहीं है कि इससे आरोपी को पीड़िता की निजता का उल्लंघन करने या कोई भी यौन अपराध करने का अधिकार मिल जाता है।’
इस मामले में कोर्ट ने पीड़िता के बयानों पर भरोसा किया। अदालत ने कहा, ‘इस मामले में क्रॉस एग्जामिनेशन में ऐसा कुछ भी सामने नहीं आया है, जो पीड़िता की विश्वसनीयता को प्रभावित कर सके।
ऐसे में सबूत मांगने का कोई कारण नहीं है, क्योंकि यह पहले से ही पीड़िता को लगी चोट का अपमान होगा।’
क्या था मामला
2007 में पीड़िता के पिता की तरफ से शिकायत दर्ज कराई गई थी, जिसमें तब 26 साल के हेमंत बर्मन पर 7वीं में पढ़ने वाली लड़की के अपहरण के आरोप लगाए गए थे।
आरोपी ने इनकार किया और कहा कि दोनों रिश्ते में थे। आरोपी ने यह भी कहा था कि वह पीड़िता और उसकी मां के साथ ही काम करता है और कहीं और रहने चलते पिता को उनके प्रेम संबंधों की जानकारी नहीं थी।
उसने कहा था कि पीड़िता अपनी मर्जी से ही उसके साथ घर छोड़कर आई थी।
इधर, पीड़िता की ओर से ट्रायल कोर्ट को बताया गया था कि उसने आरोपी के साथ जाने से इनकार कर दिया था और जबरन ले जाया गया। हाईकोर्ट का कहना है कि इस बयान के क्रॉस एग्जामिनेशन की कोई जरूरत नहीं है।
तब जज भी पीड़िता बयान पर निर्भर रहे कि आरोपी ने अपहरण कर उसे तीन दिनों तक रखा और बलात्कार किया। पीड़िता ने बयान दिया था कि बलात्कार के दौरान उसने शोर भी मचाया था।
उसने बताया था कि इसके बाद आरोपी के रिश्तेदारों ने शोर को लेकर सवाल किया था, जिसके बाद उसने बलात्कार की बात का खुलासा कर दिया। इन बयानों को मानते हुए दोष को बरकरार रखा। हालांकि, उसके ऊपर लगे अपहरण के आरोप से बरी कर दिया।