महाराष्ट्र सरकार ने मराठा आरक्षण की मांग के लिए चल रहे आंदोलन को संभालने के लिए बड़ा कदम उठाया है।
सीएम एकनाथ शिंदे की अध्यक्षता में सोमवार को हुई मीटिंग में आरक्षण पर विचार करने के लिए एक समिति का गठन कर दिया गया।
यह समिति अतिरिक्त मुख्य सचिव (राजस्व) के नेतृत्व में गठित की गई है। इस समिति को उन कदमों पर विचार करने के लिए कहा गया है कि कैसे मराठा समुदाय को कुनबी जाति का सर्टिफिकेट जारी किया जा सकता है।
इसके लिए 11 सदस्यों की समिति बनी है, जो तीन महीने में रिपोर्ट सौंपेगी।
मराठा समुदाय को कुनबी जाति का सर्टिफिकेट क्यों जारी किया जाएगा। यह बात हर कोई जानना चाहता है। इसकी वजह यह है कि मराठों की कभी एक जाति के तौर पर पहचान नहीं रही और शिंदे, झारे, जादव, घटोले, लोनारे समेत कई ऐसे समुदाय हैं, जो खुद को मराठा कहते हैं।
ऐसे में इन समुदायों को कुनबी जाति का सर्टिफिकेट जारी करने के लिए मराठाओं के रेवेन्यू और एजुकेशन रिकॉर्ड्स खंगाले जा रहे हैं। यहां तक कि निजाम के दौर में मराठाओं को लेकर क्या आदेश जारी किए गए थे और उन्हें क्या कहकर संबोधित किया गया था। इसका पता लगाया जा रहा है।
इसके आधार पर ही मराठा समुदाय के अलग-अलग वर्गों को कुनबी जाति का सर्टिफिकेट जारी किया जाएगा। इसलिए निजाम के दौर के दस्तावेजों को खंगाला जा रहा है। तब मराठवाड़ा क्षेत्र हैदराबाद प्रांत के अंतर्गत आता था। उस दौर में मराठाओं को कुनबी समुदाय में गिना जाता है, जो अब ओबीसी का हिस्सा हैं। पश्चिमी भारत और खासतौर पर महाराष्ट्र के विदर्भ और मराठवाड़ा में धोनोजे, घाटोले, मासाराम, हिंदरे, जादव, झारे, खैरे, लेवा, लोनारे, तिरोले जैसे कई समुदाय हैं, जो मराठा कहलाते और कुनबी जाति से हैं। महाराष्ट्र के अलावा इनका एक वर्ग गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, केरल और गोवा में भी बसता है। महाराष्ट्र में कुनबी समुदाय को ओबीसी आरक्षण मिलता है।
शिवाजी से क्या है मराठों का रिश्ता, कैसे खत्म हुई थी कुनबी वाली पहचान
महाराष्ट्र के इतिहास के जानकार कहते हैं कि मराठे एक दौर में मावले कहे जाते थे, जिनका रिश्ता शिवाजी से भी जुड़ता है। इन्हें मूल रूप से कुनबी जाति का ही माना जाता है। छत्रपति शिवाजी के सैनिकों को मावला कहा जाता था, फिर उन्हें ही मराठे कहा जाने लगा। यही नहीं कालांतर में महाराष्ट्र में रहने वाले सभी लोगों के लिए मराठे शब्द का इस्तेमाल शुरू हो गया। शिंदे, गायकवाड़ जैसे मराठा वंश मूल रूप से कुनबी ही थे। इतिहासकारों का कहना है कि सांस्कृतिक उत्थान होने और 14वीं शताब्दी के बाद बड़ी संख्या में कुनबी समुदाय के लोग सेना में शामिल हुए। इसके बाद वे कुनबी से ज्यादा मराठे के तौर पर पहचान रखने लगे।
क्यों महाराष्ट्र की राजनीति में अहम हैं मराठा-कुनबी
अंग्रेजी राज में कुनबी की बजाय मराठा पहचान और मजबूत होती चली गई। अब उसी पुरानी पहचान के आधार पर ही मराठों को कुनबी जाति का सर्टिफिकेट देने पर विचार किया जा रहा है। महाराष्ट्र में मराठा-कुनबी वर्ग की राजनीति इसलिए भी तेज है क्योंकि इनकी राज्य की आबादी में करीब 30 पर्सेंट की हिस्सेदारी है। खासतौर पर मराठवाड़ा क्षेत्र में तो मराठों का प्रभुत्व है। हालांकि आंदोलनकारियों का कहना है कि मराठे खेती पर ही निर्भर समुदाय रहे। इसके चलते स्थिति अब बिगड़ रही है और रोजगार के कम अवसर होने के चलते तेजी से गरीबी बढ़ी है।