चीन में लैंगिक संकट गहराता जा रहा है। देश में महिलाओं की तुलना में पुरुष बहुत अधिक हैं।
वर्ष 2022 में महिलाओं की संख्या 69 करोड़ थी, जबकि पुरुषों की संख्या 72.2 करोड़ थी। इसकी काफी हद तक वजह लिंग आधारित गर्भपात है जिसका संबंध ‘एक संतान नीति’ से है।
यह नीति 2015 में खत्म हो चुकी है। वैसे तो यह आम धारणा है कि इस नीति को कड़ाई से लागू किया गया, लेकिन कई चीनी दंपती जुर्माना भरकर और लाभ से वंचित रहने के प्रावधान को स्वीकार कर एक से अधिक बच्चे रखने में कामयाब रहे।
इसके लिए कइयों ने अल्पसंख्यक जातीय समूह का सदस्य होने का भी दावा किया। अक्सर उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उनकी पहली संतान बेटी थी।
एक संतान नीति करीब साढ़े तीन दशक तक रही जिसके बाद उसके स्थान पर 2016 में दो संतान नीति आ गई। फिर 2021 में तीन संतान नीति ने उसकी जगह ले ली।
आज भी यह धारणा बनी हुई है कि बेटियों से अधिक बेटों का मोल है। पारंपरिक रूप से पुरुष उत्तराधिकारी परिवार के खून के रिश्ते और उपनाम की निरंतरता के लिए आवश्यक माना जाता है।
दूसरी तरफ, महिलाएं खानदान से बाहर दूसरे परिवार में ब्याही जाती हैं जहां उनपर अपने ससुरालवालों की देखभाल करने और बेटे पैदा करने का दायित्व होता है। लेकिन कुछ परिवारों में बेटियों से आर्थिक सहयोग की आशा की जाती है, भले ही वहां बेटे भी क्यों न हो।
बेटे को तरजीह दिए जाने की धारणा
इस सांस्कृतिक व्यवस्था ने युवतियों के कल्याण को प्रभावित किया है। अब उनमें से कई युवतियां बेटे को तरजीह दिए जाने के फलस्वरूप वित्तीय, श्रम और भावनात्मक ढंग से उत्पीड़न की शिकार हो रही हैं।
हाल के वर्षों में लोकप्रिय टेलीविजन सीरीज- ‘ओडे टू जॉय’ (2016) टूटी कड़ी, ‘ऑल इज वेल’ (2019) और ‘आई विल फाइंड यू बेटर होम’ (2020) से पारिवारिक भेदभाव और समसामयिक चीनी समाज में बेटियों के साथ अब भी हो रहे बुरे बर्ताव की ओर फिर से ध्यान खींचा है। उनमें से कई महिलाएं अपनी स्थिति की चर्चा करने के लिए सोशल मीडिया की ओर उन्मुख हुई हैं।
जन्म से ही भरा जा रहा अपात्र होने का भाव
पुत्र तरजीह की दृढ भावना वाले परिवारों में बेटियों के दिमाग में जन्म से ही यह भरा जाता है कि अपात्र होने के बाद भी वे परिवार के संसाधनों का लाभ उठाती हैं।
जन्म लेने के साथ ही वे हमेशा के लिए परिवार के प्रति ऋणी हो गई हैं। इससे उनमें असुरक्षा और निम्न आत्मसमान की भावना घर कर जाती है और जीवनपर्यंत उनमें यह दायित्व बोध बन जाता है कि परिवार का सहयोग कर उन्हें अपना ऋण उतारना है।
उच्च माध्यमिक स्कूल की द्वितीय वर्ष छात्रा (इंग्लैंड और वेल्स में कक्षा 9 के समकक्ष) ने टिप्पणी की कि इन आशाओं के साथ कैसे उसकी तकदीर को आकार प्रदान किया जा रहा है कि वह अपने परिवार को आर्थिक ढंग से सहारा दे।
जन्म से ही भरा जा रहा अपात्र होने का भाव
पुत्र तरजीह की दृढ भावना वाले परिवारों में बेटियों के दिमाग में जन्म से ही यह भरा जाता है कि अपात्र होने के बाद भी वे परिवार के संसाधनों का लाभ उठाती हैं। जन्म लेने के साथ ही वे हमेशा के लिए परिवार के प्रति ऋणी हो गई हैं।
इससे उनमें असुरक्षा और निम्न आत्मसमान की भावना घर कर जाती है और जीवनपर्यंत उनमें यह दायित्व बोध बन जाता है कि परिवार का सहयोग कर उन्हें अपना ऋण उतारना है।
उच्च माध्यमिक स्कूल की द्वितीय वर्ष छात्रा (इंग्लैंड और वेल्स में कक्षा 9 के समकक्ष) ने टिप्पणी की कि इन आशाओं के साथ कैसे उसकी तकदीर को आकार प्रदान किया जा रहा है कि वह अपने परिवार को आर्थिक ढंग से सहारा दे।
छात्रा बोली- मैं मर जाना चाहती थी क्योंकि…
इससे छात्रा में बेकार, प्रेमभाव से वंचित होने की भावना आ गई है और उसमें खुदकुशी का ख्याल भी आता है।
उसने कहा कि मेरी मां मेरे प्रति बहुत स्पष्टवादी रही है और मुझे याद दिलाती रहती हैं कि अपने बुढ़ापा के लिए मैंने तुम्हें पाला पोसा, एक महीने बाद तुम्हें मुझे कितना देना चाहिए।
तुम्हें अपने छोटे भाई और उसकी पढाई के लिए वित्तीय रूप से मदद करनी चाहिए। मुझे कभी नहीं लगा कि मुझे प्यार किया गया और मेरी सदैव इच्छा रही कि घरवाले मुझे प्यार करे।
मैं असुरक्षित हूं और मुझमें आत्मसम्मान काफी कम है। मैं सीढ़ी से कूदकर जान देना चाहती थी ताकि अंतत: मैं खुश हो जाऊं।