चंद्रयान मिशन की सफलता के बाद अब ISRO आदित्य L-1 मिशन की तैयारी पूरी कर रहा है।
सूर्य के अध्ययन के लिए भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी पहली बार अंतरिक्ष आधारित कोई मिशन लॉन्च करने जा रही है। इसे सितंबर के पहले सप्ताह में ही श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया जाएगा।
इसरो चीफ सोमनाथ ने कहा कि अगले एक या दो दिन में लॉन्च का सही समय और तारीख बता दिया जाएगा। बता दें कि इस स्पेसक्राफ्ट को सूर्य और धरती के होलो ऑर्बिट सिस्टम में लैग्रेंज पॉइंट 1 (L1) पर सथापित किया जाएगा। इसकी धरती से दूरी 15 लाख किलोमीटर होगी।
125 दिनों का सफर करेगा आदित्यन एल-1
लैग्रेंज पॉइंट से बिना किसी बाधा के अंतरिक्ष यान सूर्य का अध्ययन कर पाएगा। यहां से ग्रहण का भी असर नहीं दिखाई देगा। लॉन्च के बाद एल-1 पॉइंट तक पहुंचने में आदित्यन एल-1 को 125 दिनों का समय लगेगा।
सोमनाथ ने कहा, हमें 125 दिनों का इंतजार करना होगा। आदित्य एल-1 मिशन के साथ सात पेलोड जाएंगे जो कि फोटोस्फेयर, क्रोमोस्फेयर और सूर्य की बाहरी परत का अलग-अलग वेवबैंड में अध्ययन करेगा।
क्या है लैग्रेंज पॉइंट
लैग्रेंज पॉइंट 1 को सामान्य तौर पर एल-1 के नाम से जाना जाता है। ऐसे पांच पॉइंट धरती और सूर्य के बीच हैं जहां सूर्य और पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल बैलेंंस हो जाता है और सेंट्रिफ्युगल फोर्स बन जाता है।
ऐसे में इस जगह पर अगर किसी ऑब्जेक्ट को रखा जाता है तो वह आसानी से दोनों के बीच स्थिर रहता है और एनर्जी भी कम लगती है। पहले लैग्रेंज पॉइंट धरती और सूर्य के बीच 15 लाख किलोमीटर की दूरी पर है।
आम शब्दों में कह सकता है कि एल-1 ऐसा बिंदु है जहां पर कोई भी ऑब्जेंटक सूर्य और धरती से बराबर दूरी पर स्थिर रह सकता है।
यह दोनों ही बॉडीज के गुरुत्वाकर्षण के संगम की वजह से होता है। ऐसे में यह स्थान अध्ययन के नजरिए से उपयुक्त रहता है।
उदाहरण के तौर पर सोलर ऐंड हेलिस्फेरिक ऑब्जर्वेटरी (SOHO) एल-1 के पास ही ऐसा बिंदु है जहां से बिना किसी बाधा के कॉस्मोस पर नजर रखा जा सकता है। धरती का वायुमंडल और डे-नाइट साइकल भी इसे प्रभावित नहीं करते हैं।
लैग्रेंज पॉइंट पर पृथ्वी और सूर्य दोनों के गुरुत्वाकर्षण का न्यूनतम प्रभाव रहता है। आदित्य-एल1 सूर्य के फोटोस्फेयर, क्रोमोस्फेयर और कोरोना, इसके चुंबकीय क्षेत्र. टोपोलॉजी और सोलर विंड का अध्ययन करेगा।
इसरो का कहना है कि इस मिशन का लक्ष्य क्रोमोस्फेयर यानी सूर्य की दिखाई देने वाली सतह फोटोस्फेयर के ठीक ऊपर की परत की गतिशीलता, सूर्य के टेंपरेचर, कोरोनल मास इंजेक्शन और सोलर विंड के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करना है। सात पेलोड में से चार लगातार सूर्य पर नजर बनाए रखेंगे।