भारत ने चांद पर भी पदार्पण कर दिया है।
चंद्रयान 3 के सहारे अब चांद की सतह पर भी तिरंगा लहरा रहा है।
फिलहाल, इंतजार विक्रम लैंडर, प्रज्ञान रोवर से मिलने वाली जानकारियों का है, जो भारत को अंतरिक्ष विज्ञान में कई पायदान ऊपर पहुंचा सकती हैं।
हालांकि, यह उपलब्धि एक बार में नहीं मिली। इससे पहले भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी ISRO ने चंद्रयान 1 और चंद्रयान 2 के जरिए दो बार और कोशिशें की थीं। जानते हैं इतिहास।
चंद्रयान 1 की कहानी
22 अक्टूबर 2008 की बात है, जब भारत ने चंद्रयान 1 को पृथ्वी से विदा किया। 1380 किलो का इस अंतरिक्ष यान में ऑर्बिटर और इंपैक्टर लगे थे।
इसका काम चांद की सतह से 100 किमी दूर चक्कर काटना था। खास बात है कि इस मिशन में शामिल 5 उपकरण स्वदेशी थे। जबकि, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, स्वीडन और बुल्गारिया ने भी मदद की थी।
क्या था मकसद
डेटा जुटाने के लिए प्रयोग करना, चांद की फार (ऐसी सतह जो पृथ्वी से नजर नहीं आती) और नियर साइड का 3D एटलस तैयार करना, चांद की सतह की पूरी केमिकल और मिनरल इमेजिंग और खासतौर से चांद पर पानी की मौजूदगी पता करना। चंद्रयान 1 के प्रमुख उद्देश्यों में यह सब शामिल था।
करीब 2 सालों के मिशन की योजना थी, लेकिन तकनीकी परेशानियों और संपर्क टूट जाने के चलते 312 दिनों बाद मिशन को बंद कर दिया गया।
दरअसल, ऐसा कहा जाता हैकि अंतरिक्षयान के लिए मददगार स्टार ट्रेकिंग सिस्टम सूर्य की रेडिएशन से गर्म हो गया था, जिसके चलते थर्मल शील्ड प्रभावित हुई और अन्य तकनीकी परेशानियां भी आती गईं।
चंद्रयान 1 ने की वॉटर मॉलेक्यूल्स की खोज
भले ही मिशन तय समय से पहले खत्म हो गया हो, लेकिन चांद की सतह पर वॉटर मॉलेक्यूल्स की खोज के चलते हमेशा चंद्रयान को सराहा जाता है। साथ ही चंद्रयान 1 ने मेग्नीशियम, एल्युमीनियम और सिलिकॉन का पता भी लगाया था।
चंद्रयान 2 की कहानी
अब 2019 की 22 जुलाई तक आ पहुंची। अब भारत चंद्रयान 2 की सफल लॉन्चिंग भी कर चुका था। इस बार अंतरिक्ष यान में ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर भी शामिल थे।
इसे चांद के दक्षिणी ध्रुव पर खोज, हाइड्रोक्साइल और वॉटर आइस का पता लगाने, मिनरलॉजी का काम सौंपा गया था। अब हाई वेलोसिटी के चलते हार्ड लैंडिंग करने के कारण लैंडर फेल हो गया।
हालांकि, इसरो के पूर्व चीफ के सिवन आधिकारिक कमेटी की जांच के आधार पर चंद्रयान 2 मिशन को 98 फीसदी सफल बताते हैं।
इस मिशन में लॉन्चिंग, चांद की कक्षा में ऑर्बिटर का पहुंचना और ऑर्बिटर से लैंडर का अलग होने की प्रक्रियाएं सफल रही थीं।