मध्य प्रदेश समेत पांच राज्यों में इस साल के अंत तक विधान सभा चुनाव होने हैं।
इन चुनावों को 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों का सेमीफाइनल माना जा रहा है। ऐसे में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी ने मध्य प्रदेश को सत्ता संघर्ष की राह में एक अहम पड़ाव मानते हुए, वहां चुनावी मैदान की किलेबंदी और मजबूत कर दी है।
पार्टी ने ‘एक सीट, एक ऑब्जर्वर’ की नीति का पालन करते हुए सभी 230 विधानसभा सीटों पर दूसरे राज्यों से कुल 230 नेताओं को लाकर तैनात किया है। ये सभी भाजपा नेता प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की ‘ग्राउंड रिपोर्ट’ तैयार करेंगे।
230 में 48 गुजरात से
बाहर से लाए गए 230 नेता गुजरात, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और बिहार से हैं। इस ग्रुप में 48 सिर्फ गुजरात से हैं। ये सभी नेता मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सरकार को किसी भी सत्ता विरोधी लहर को मात देने में मदद करेंगे।
मध्य प्रदेश जा रहे गुजरात के एक वरिष्ठ विधायक ने बताया कि नेताओं को प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में “पर्यवेक्षकों और निरीक्षकों” की भूमिका सौंपी जाएगी और उन्हें “मैक्रो-प्लानिंग गतिविधियों को मजबूत करने” का काम सौंपा जाएगा।
उनके मुताबिक, इसी तरह की रणनीति गुजरात चुनावों में भी आजमाई गई थी। अपने -अपने विधानसभा क्षेत्रों में जाने से पहले सभी 230 नेताओं ने शनिवार को भोपाल में एक दिवसीय शिविर में भाग लिया।
टीम फील्ड में रहेगी एक सप्ताह
इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए गुजरात विधायक ने कहा, “रविवार से, हम एक सप्ताह के लिए फील्ड में रहेंगे।
वहां स्थानीय नेताओं से मिलेंगे और समझेंगे कि पार्टी की योजना और ताकत के संदर्भ में उस निर्वाचन क्षेत्र को क्या चाहिए… विधायक स्थानीय नेताओं की ‘आकांक्षाओं’ को सुनकर पर्यवेक्षक के रूप में कार्य करेंगे और उम्मीदवारों की सिफारिश करेंगे, ताकि पार्टी नेतृत्व को मदद मिल सके।”
टीम में नए-पुराने का संगम
230 लोगों की टीम में अधिकांश विधायक हैं। इनमें कुछ नए हैं तो कुछ सत्ता समीकरण के पुराने खिलाड़ी हैं।
बीजेपी शिवराज सिंह चौहान सरकार के खिलाफ एंटी इनकमबेंसी फैक्टर को दूर करने के अलावा आदिवासी बहुल सीटों पर स्थिति सुधारना चाहती है।
इसके लिए पार्टी ने गुजरात के वैसे नेताओं को भी टीम में शामिल किया है, जो आदिवासी बहुल सीटों पर पार्टी को जीत दिलाने में कामयाब रहे हैं।
आदिवासी सीटों पर विशेष जोर
गुजरात के आदिवासी क्षेत्र के एक अन्य वरिष्ठ भाजपा विधायक ने कहा कि पार्टी मध्य प्रदेश की आदिवासी सीटों पर गुजरात जैसा प्रदर्शन दोहराने की उम्मीद कर रही है, क्योंकि चुनावी राज्य के नतीजे अगले साल लोकसभा चुनावों पर भी असर डाल सकते हैं।
उन्होंने कहा, “लोकसभा चुनाव करीब आने के साथ, मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव बड़े अंतर से जीतना जरूरी है… विशेष रूप से आदिवासी इलाकों में जहां सत्ता विरोधी लहर है। हाल की घटनाओं और समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की संभावना के खिलाफ़ वहां कई विरोध-प्रदर्शन की घटनाएं हुई हैं।”
गुजरात मॉडल दोहराने का इरादा
गुजरात विधायक ने कहा कि चूंकि पार्टी ने 2022 के गुजरात विधानसभा चुनावों में 27 में से 23 आदिवासी सीटों पर जीत दर्ज की है, इसलिए एमपी के भी ऐसे आदिवासी बहुल निर्वाचन क्षेत्रों में विकास की बात पहुंचाकर गुजरात जैसी उपलब्धि को दोहराने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
उन्होंने कहा कि नेताओं को उन सीटों पर “तटस्थ पर्यवेक्षक” के रूप में कार्य करने के लिए सावधानीपूर्वक चुना गया है, जहां वे पहली बार जा रहे हैं।
टीम में पूर्व मंत्री, पूर्व सांसद भी शामिल
गुजरात के 48 नेताओं में से 18 को अनुसूचित जनजाति (एसटी) की सीटें सौंपी गई हैं। इनमें से 10 सीटों पर 2018 में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी।
इन 18 सीटों पर जिन नेताओं को पार्टी ने उतारा है, उनमें गुजरात की जनजातीय विकास राज्य मंत्री निमिषा सुथार (पानसेमल), पूर्व राज्यसभा सांसद मनु पटेल (पेटलावद), शैलेश भाभोर (अलीराजपुर), चैतन्य देसाई (झाबुआ), और महेश भूरिया (कुक्षी) शामिल हैं।
हार्दिक पटेल को भी जिम्मेदारी
भाजपा ने अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों के अलावा कई नेताओं को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों पर भी भेजा है, जहां पांच साल पहले कांग्रेस से हार का सामना करना पड़ा था।
इस टीम में गुजरात के पूर्व कैबिनेट मंत्री ईश्वरसिंह परमार भी शामिल हैं। पहली बार विधायक बने और पाटीदार आरक्षण आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल को इंदौर-5 सीट सौंपी गई है।
उनके अलावा 2002 के नरोदा पाटिया दंगों के दोषी की बेटी पायल कुकरानी को भी शामिल किया गया है। वडोदरा के पूर्व मेयर और सयाजीगंज विधायक केयूर रोकाडिया को इंदौर-2 सीट सौंपा गया है।