पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश बनाकर भारत ने 1971 में पूरी दुनिया को अपनी ताकत का लोहा मनवा दिया था।
इस युद्ध के बाद पाकिस्तान की एक चौथाई सेना भारत के पास युद्ध बंदी थी। वहीं कश्मीर के एक हिस्से पर कब्जा जताने वाले पाकिस्तान का 5 हजार वर्ग मील भारतीय सेना के कब्जे में था।
इसके बाद 1972 में शिमला में समझौता हुआ। जानकार आज भी इस समझौते को भारत की ‘राजनीतिक गलती’ बताते हैं। शांति की चाह में ही भारत ने पाकिस्तान को उसकी सेना भी वापस कर दी और कब्जा किया हुआ बड़ा इलाका भी।
जुल्फिकार अली भुट्टो ने की थी चालाकी?
2 जुलाई 1972 को शिमला में भारत और पाकिस्तान के बीच एक समझौते पर साइन किए गए। 1970 में पाकिस्तान के हालत बेहद खराब हो गई थी। युद्ध की वजह से वह बेहद बुरी हालत में था।
वहीं पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता हमेशा ही बनी रही है। उस वक्त पाकिस्तान का कोई संविधान नहीं था।
उस समय भारतीय मीडिया लगातार खबरें छाप रहा था कि भारत को इसी समय पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को वापस ले लेना चाहिए। भारत को अपनी शर्तों पर कश्मीर के साथ ही बाकी विवादों को हल करना चाहिए।
पहले बात नहीं करना चाहती थीं इंदिरा
इंदिरा गांधी पहले पाकिस्तान से बात ही नहीं करना चाहती थीं। हालांकि वहां के राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने रूस का रुख किया।
वह इस बात के लिए गिड़गिड़ाए कि किसी तरह इंदिरा गांधी बातचीत के लिए तैयार हो जाए। रूस के कूटनीतिक प्रयासों के बाद इंदिरा गांधी बातचीत के लिए तैयार हो गईं।
बातचीत के लिए दोनों तरफ से प्रतिनिधिमंडल बनाया गया। समझौते को औपचारिक शक्ल देने के लिए फिर जुल्फिकार का भारत आना तय हुआ।
भारत की तरफ से बात करने वाली टीम के एक अधिकारी ने कहा था कि भारत विजयी होने के बाद भी बहुत कुछ हासिल नहीं कर सका।
उस दौरान दुनिया विजयी राष्ट्र भारत के पक्ष में थी। ऐसे में सारे समझौते अपनी शर्तों पर करने चाहिए थे। हालांकि हम अपनी ही जीत पर शर्मिंदा दिख रहे थे और समझौता करने के लिए पाकिस्तान के आगे झुके हुए नजर आ रहे थे।
उनके अलावा भी कई जानकार शिमला समझौते को राजनीतिक गलती बता चुके हैं। प्रोफेसर उदय बालाकृष्णन ने कई बार इंदिरा गांधी की तारीफ में लेख लिखे हैं लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि शिमला समझौता एक राजनीतिक गलती थी।
उन्होंने कहा, बांग्लादेश बनने के बाद पाकिस्तान को अपने पूर्वी भाग का नुकसान उठाना पड़ा लेकिन अगर गौर किया जाए कि भारत ने क्या हासिल किया तो शायद कुछ नहीं।
जितने भी इलाके भारत के कब्जे में थे, सारे वापस कर दिए गए। इसके अलावा पूर्वी पाकिस्तान में नरसंहार के आरोपी पाकिस्तानी सेना के अधिकारियों को भी बिना मुकदमा चलाए ही पाकिस्तान को वापस कर दिया गया। उस वक्त भारत ने पाकिस्तान के लगभग पांच हजार वर्ग मील क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था और उसकी सेना का एक चौथाई भाग भारत के कब्जे में था।
जानकारों का कहना है कि इंदिरा गांधी यह नहीं चाहती थी कि पाकिस्तान के साथ ऐसा समझौता हो जो कि आगे के संघर्ष को जन्म दे। वह शांति चाहती थीं।
वहीं कुछ लोगों का कहना यह भी है कि जुलफिकार अली भुट्टो की रणनीति चालाकी भरी थी। इसलिए हार के बाद भी पूर्वी पाकिस्तान को छोड़कर वह सब कुछ वापस लेने पर कामयाब रहे। 1971 के युद्ध के बाद पाकिस्तान बहुत मीठा बोल रहा था और ऐसा लग रहा था कि वह बहुत ही शांति प्रिय था। वह अपने दिखावे में कामयाब रहा।
जुल्फिकार 84 लोगों को अपने साथ लेकर भारत आए थे। इसमें राजनेता, बुद्धिजीवी, पत्रकार, खुफिया अधिकारी और सेने के अधिकारी शामिल थे।
कुल मिलाकर वह पूरा ड्राम करने भारत आए थे जहां हर किरदार की भूमिका तय थी। यहां तक निर्देश दिए गए थे कि कैसे भारत की तारीफ करनी है, कैसे मुस्कुराना है और खुद को कैसे शांतिप्रिय दिखना है।
पाकिस्तान की तरफ से ऐसे लोगों को इकट्ठा करके लाया गया था जिनका भारत के साथ कोई संबंध हो या फिर उनके रिश्तेदार यहां रहते हों। इस समझौते के बाद पाकिस्तान को अपने सैनिक और जमीन दोनों मिल गईँ।