जब ऋषि सुनक ने 11 डाउनिंग स्ट्रीट में जलाए दीये, रामकथा में पुरानी यादों को किया ताजा…

ब्रिटेन के प्रधान मंत्री ऋषि सुनक ने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के जीसस कॉलेज में आध्यात्मिक नेता मोरारी बापू द्वारा आयोजित ‘राम कथा’ कार्यक्रम में भाग लिया।

सुनक ने कार्यक्रम में अपने संबोधन की शुरुआत “जय सिया राम” के नारे लगाकर किया।

इस दौरान सुनक ने कहा कि वह आज देश के पीएम नहीं, बल्कि एक हिन्दू के रूप में यहां उपस्थित हुए हैं।

उन्होंने पुराने दिनों को भी याद किया और कहा कि 2020 में उन्होंने 11 डाउनिंग स्ट्रीट के बाहर दिवाली पर दीये जलाए थे। ऋषि सुनक का वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रहा है। लोग सुनक की काफी प्रशंसा कर रहे हैं।

स्वतंत्रता दिवस पर यूके पीएम ऋषि सुनक ने कैम्ब्रिज विवि के जीसस कॉलेज में आध्यात्मिक नेता मोरारी बापू द्वारा आयोजित रामकथा में भाग लिया। सुनक ने अपने संबोधन में कहा, ”जय सिया राम। बापू, मैं आज यहां एक प्रधानमंत्री के रूप में नहीं, बल्कि एक हिंदू के रूप में हूं।”

सुनक ने आगे कहा, “मेरे लिए, आस्था बहुत व्यक्तिगत है। यह मेरे जीवन के हर पहलू में मेरा मार्गदर्शन करता है। प्रधान मंत्री बनना एक बड़ा सम्मान है, लेकिन यह कोई आसान काम नहीं है। कठिन निर्णय लेने पड़ते हैं। आस्था की ही वजह से मुझे अपने देश के लिए सर्वश्रेष्ठ करने के लिए साहस, शक्ति और लचीलापन मिलता है।”

जब दिवाली पर जलाए दीये
भारतीय मूल के पहले ब्रिटिश पीएम के रूप में सुनक ने 2020 के एक विशेष क्षण को याद किया जब उन्होंने नंबर 11 डाउनिंग स्ट्रीट के बाहर दिवाली दीये जलाए थे, जब वह पहले ब्रिटिश भारतीय चांसलर के रूप में कार्यरत थे। सभा के दौरान, मोरारी बापू ने सुनक को सोमनाथ मंदिर से एक ‘प्रतिष्ठित शिवलिंग’ भेंट किया, जो ज्योतिर्लिंग राम कथा यात्रा के पवित्र प्रसाद का प्रतीक है।

मोरारी बापू कौन हैं?
मोरारी बापू, एक भारतीय आध्यात्मिक उपदेशक और “रामायण” के प्रसिद्ध व्याख्याता हैं, जिन्होंने 60 वर्षों से अधिक समय से दुनिया भर में राम कथाएं आयोजित की हैं।

1946 में गुजरात के भावनगर में जन्मे, वह अपने परिवार के साथ वहीं रहते हैं। मोरारी बापू की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, जब वह 12 साल के थे, तब उन्होंने संपूर्ण रामचरितमानस याद कर लिया था और 14 साल की उम्र में राम कथा का पाठ करना शुरू कर दिया था।

रामायण एक प्राचीन महाकाव्य है जो पहली बार ऋषि वाल्मिकी द्वारा संस्कृत में लिखा गया था।

इसी के आधार पर बाद में गोस्वामी तुलसीदास ने 16वीं शताब्दी की अवधी हिंदी में “रामचरितमानस” लिखा, जिसे मोरारी बापू अपनी कथाओं में उपयोग करते हैं।

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