पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट (एससी) ने शुक्रवार को एक बेहद अहम फैसला सुनाया जिससे पूर्व पीएम नवाज शरीफ की चुनाव लड़ने की उम्मीदों पर पानी फिर गया।
पाकिस्तान की शीर्ष अदालत ने कहा कि ‘फैसला और आदेश की समीक्षा अधिनियम, 2023’ पूरी तरह “असंवैधानिक” था।
इससे पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) सुप्रीमो नवाज शरीफ की सभी उम्मीदें ध्वस्त हो गईं, जो अपनी आजीवन अयोग्यता को चुनौती देने की मांग कर रहे थे।
शीर्ष अदालत की तीन सदस्यीय पीठ ने मई के अंत में लागू कानून को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर 7 जून से 19 जून तक छह सुनवाई के बाद 19 जून को फैसला सुरक्षित रखने की घोषणा की थी।
इस फैसले से पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान जरूर खुश होंगे जो अभी जेल में बंद हैं। पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के प्रमुख खान तोशाखाना भ्रष्टाचार मामले में एक अदालत द्वारा तीन साल की सजा सुनाए जाने के बाद पांच अगस्त से अटक जेल में बंद हैं।
बता दें कि पाकिस्तान सरकार ने मई में अपने मूल अधिकार क्षेत्र के तहत उच्चतम न्यायालय द्वारा दोषी ठहराए जाने के खिलाफ अपील का अधिकार प्रदान करने के लिए कानून बनाया।
निवर्तमान प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के बड़े भाई नवाज शरीफ को वर्ष 2017 में शीर्ष अदालत की पांच सदस्यीय पीठ ने अयोग्य घोषित कर दिया था, लेकिन वह अपील दायर नहीं कर सके क्योंकि शीर्ष न्यायपालिका के फैसले को चुनौती देने के लिए कोई कानून नहीं था।
वर्ष 2018 में उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद वह सार्वजनिक पद संभालने के लिए आजीवन अयोग्य हो गए। पूर्व प्रधानमंत्री शरीफ (73) नवंबर, 2019 से चिकित्सा उपचार के लिए लंदन में रह रहे हैं, जब पाकिस्तानी अदालत ने उन्हें चार सप्ताह की राहत दी थी।
तीन बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे शरीफ लंदन रवाना होने से पहले अल-अजीजा भ्रष्टाचार मामले में लाहौर स्थित कोट लखपत जेल में सात साल कारावास की सजा काट रहे थे।
उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 62 के तहत राजनेता जहांगीर तरीन को भी अयोग्य ठहराया था। जियो न्यूज की खबर में कहा गया कि यदि आज का फैसला याचिकाओं के पक्ष में रहा होता, तो दोनों नेताओं को अपनी अयोग्यता को चुनौती देने का मौका मिल जाता।
प्रधान न्यायाधीश उमर अता बंदियाल की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की तीन सदस्यीय पीठ ने विवादास्पद कानून को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई करने के बाद फैसला सुनाया।
न्यायमूर्ति इजाजुल अहसन और न्यायमूर्ति मुनीब अख्तर भी पीठ के सदस्य हैं। विस्तृत फैसले में कहा गया कि यह कानून संसद की विधायी क्षमता से परे होने के साथ-साथ ‘संविधान के प्रतिकूल’ है। आदेश में कहा गया, ‘‘तदनुसार इसे अमान्य मानते हुए रद्द किया जाता है और इसका कोई विधिक असर नहीं होगा।’’