दुनिया की फैक्टरी माने जाने वाले चीन की अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी पड़ रही है।
इससे यह सवाल पैदा होता है कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था सुस्त क्यों पड़ रही है। जहां तक भारत पर असर की बात है तो अच्छी और बुरी दोनों खबरें हैं। मिंट के एन. माधवन ने इन दोनों पहलुओं की पड़ताल की है।
चीन की आर्थिक स्थिति: 18 ट्रिलियन डॉलर की चीनी अर्थव्यवस्था काफी धीमी हो रही है। इसका पीएमआई सूचकांक जून में 50.5 था जो जुलाई में घटकर 49.1 रह गया। यह आंकड़ा 50 से नीचे जाने पर सुस्ती की संकेत देता है। चीन की सेवा पीएमआई भी मई में 57.1 से गिरकर जून में 53.9 पर आ गई।
इस वर्ष की दूसरी तिमाही में, इसकी अर्थव्यवस्था पहली तिमाही के मुकाबले केवल 0.8% बढ़ी। आईएमएफ के अनुसार, चीन की अर्थव्यवस्था 2023 में 5.2% की रफ्तार से बढ़ेगी। यह रफ्तार वर्ष 2022 में 3% और 2021 में 8.4% थी। चीन सरकार की तरफ से अब तक किसी भी बड़े प्रोत्साहन की घोषणा नहीं हुई है।
इस मंदी का कारण: चीन के बाजार की सुस्ती की वजह रियल एस्टेट बाजार में संकट, गिरता निर्यात और कमजोर उपभोक्ता खर्च हैं। गौरतलब है कि जुलाई में घरों की बिक्री में 33% की गिरावट आई। यह प्रमुख तथ्य है कि चीन की जीडीपी में निर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी 20% है।
महंगाई से जूझते विकसित देशों की तरफ से मांग में कमी आई है। साथ ही कई बड़े खिलाड़ी अपने कारोबार को चीन से बाहर स्थानांतरित कर रहे हैं। इससे भी निर्यात में कमी आई है। इससे बेरोजगार बढ़ने के साथ घरेलू उपभोक्ता खर्च में कमी आई है।
इसका दुनिया पर क्या असर होगा: आईएमएफ का कहना है कि चीन की आर्थिक वृद्धि दर में एक प्रतिशत की वृद्धि से अन्य देशों में 0.3 प्रतिशत की वृद्धि होती है।
संघर्षरत चीनी अर्थव्यवस्था से वैश्विक सुधार को शुरुआती स्थिति में ही बाधित कर देगी। आईएमएफ के अनुसार, 2022 में 3.5% के मुकाबले 2023 में वैश्विक वृद्धि अब केवल 3% होगी। वर्ष 2023 में वैश्विक विकास में चीन और भारत की तरफ से 50% से अधिक योगदान करने की उम्मीद है।
नकारात्मक प्रभाव की आशंका: हां, चीन भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। वर्ष 2021-22 में, भारत के व्यापार में इसका हिस्सा 11.2% यानी 116 अरब डॉलर था। यदि चीन की अर्थव्यवस्था संघर्ष करती है, तो चीनी आबादी खर्च घटाएगी, जिसका अर्थ है भारत से निर्यात कम होगा।
सस्ता चीनी सामान भारत में डंप होने की संभावना बढ़ जाएगी, जिससे छोटे भारतीय व्यवसायों पर असर पड़ेगा। भारत अभी भी अपने ज्यादातर सक्रिय फार्मास्युटिकल, सौर फोटोवोल्टिक सेल्स और ईवी बैटरी पार्ट के लिए चीन पर निर्भर है। उनकी आपूर्ति भी प्रभावित हो सकती है।