पूजा स्थल अधिनियम, 1991 को खत्म करने को लेकर देश में काफी समय से बहस छिड़ी हुई है।
इस बीच, बीजेपी सांसद मनोज तिवारी ने कहा कि वह व्यक्तिगत रूप से इसको हटाने के पक्ष में हैं। उन्होंने कहा कि यह एक्ट संविधान की मूल भावना के खिलाफ है और ज्ञानवापी मामले पर लागू नहीं होता है।
मनोज तिवारी लोकसभा में उत्तर-पूर्वी दिल्ली का प्रतिनिधित्व करते हैं। वह वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर के प्राचीन मॉडल के अनावरण समारोह में रविवार को बोल रहे थे। आदि महादेव काशी धर्मालय मुक्ति न्यास, वाराणसी की ओर से संगोष्ठी व समारोह का आयोजन किया गया था।
मनोजी तिवारी ने कहा, ‘कुछ लोग संसद में आए और कहने लगे कि अब जब राम मंदिर बन रहा है, तो ऐसा कोई दूसरा मुद्दा (ज्ञानवापी) नहीं उठाया जाना चाहिए।
इन लोगों ने पूजा स्थल अधिनियम का हवाला भी दिया।’ भाजपा सांसद यहीं पर नहीं रुके, उन्होंने आगे कहा कि यह मोदी सरकार है।
अगर जरूरत पड़ी तो संविधान में एक और संशोधन होगा। मोदी सरकार ने करीब 2,200 कानूनों को खत्म कर दिया जो लोगों के लिए सही नहीं थे।
क्या है पूजा स्थल अधिनियम, 1991?
पूजा स्थल अधिनियम साल 1991 में लागू हुआ। यह एक्ट कहता है कि 15 अगस्त, 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता।
अगर इसके उल्लंघन का प्रयास किया जाता है तो जुर्माने और 3 साल तक की जेल का प्रावधान है। यह कानून तत्कालीन कांग्रेस प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव सरकार में लाया गया।
मालूम हो कि यह कानून तब लागू हुआ, जब देश में बाबरी मस्जिद और अयोध्या राम मंदिर का मुद्दा गरमाया हुआ था।
‘यह एक्ट संविधान की मूल भावना के खिलाफ’
बीजेपी एमपी ने कहा, ‘हमारे देश का लंबा इतिहास है। आक्रमणकारी आए और मंदिरों को तोड़ा व धर्म परिवर्तन कराया। आक्रमणकारी कौन थे? वे विदेशी थे, आक्रमणकारी मुगल थे।
उन्होंने मंदिर तोड़ दिए।’ उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकार के समय ऐसा कानून आया (पूजा स्थल अधिनियम, 1991) जिसके तहत आप किसी भी टूटे हुए मंदिर के मुद्दे पर केस नहीं लड़ सकते।
यह तो संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। संविधान की मूल भावना है कि अगर कोई विवाद है तो न्याय और समीक्षा होनी चाहिए।
मनोज तिवारी ने आम्बेडकर का किया जिक्र
मनोज तिवारी ने कहा, ‘मैं निजी तौर पर यह मानता हूं कि पूजा स्थल अधिनियम, 1991 संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। बाबा साहब भीम राव आम्बेडकर ने खुद कहा था कि संविधान में समय-समय पर कुछ नए संशोधनों की जरूरत होगी।
बाबा साहब ने यह बात 1947 में कही थी।’ उन्होंने कहा कि आखिर आप उन्हें कैसे चुनौती दे सकते हैं? आप कैसे कह सकते हैं कि इस कानून की समीक्षा नहीं होगी? ऐसे में तो लोकतंत्र का अर्थ ही नष्ट हो जाएगा।
ज्ञानवापी मामले से इसका लेना-देना नहीं: तिवारी
भाजपा नेता ने कहा कि ज्ञानवापी मामला पूजा स्थल अधिनियम, 1991 से बहुत पहले का है। इसलिए, इसका मामले से कोई लेना-देना नहीं है।
यह इस केस में लागू ही नहीं होता है। उन्होंने कहा कि ज्ञानवापी मामला बहुत पुराना है। यह आजादी के समय से चला आ रहा है।
तिवारी ने कहा, ‘मैं एएसआई की स्थायी समिति का सदस्य हूं। एएसआई 500 साल पुरानी जर्जर इमारतों को कभी गिरने नहीं देता।
एएसआई इमारतों को मजबूत बनाने के लिए जाना जाता है। इसलिए, जो लोग एएसआई के खिलाफ हैं, उन्हें एएसआई पर संदेह नहीं करना चाहिए।’