दिल्ली अध्यादेश से जुड़े विधेयक को मोदी कैबिनेट की मंगलवार को मंजूरी मिल गई। अब आने वाले दिनों में इसे संसद में पेश किया जाएगा।
आम आदमी पार्टी शुरुआत से ही इस अध्यादेश का विरोध कर रही है और पिछले दिनों मुख्यमंत्री केजरीवाल ने विभिन्न विपक्षी दलों के नेताओं के साथ मुलाकात करके इस मुद्दे पर समर्थन हासिल किया था।
मॉनसून सत्र से ठीक पहले कांग्रेस ने भी संसद में इस विधेयक का विरोध करने का ऐलान किया था। इससे साफ है कि संसद में जब भी इस विधेयक को पेश किया जाएगा, तब विपक्षी दल इस पर हंगामा कर सकते हैं।
पीएम मोदी के नेतृत्व में मंगलवार शाम को केंद्रीय कैबिनेट की अहम बैठक हुई। इस बैठक में दिल्ली अध्यादेश वाले विधेयक को संसद में पेश करने के लिए मंजूरी भी दी गई।
केंद्र का यह अध्यादेश दिल्ली में अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग के मामले में दिल्ली सरकार को झटका देता है।
अध्यादेश में दिल्ली, अंडमान और निकोबार, लक्षद्वीप, दमन और दीव और दादरा और नगर हवेली (सिविल) सेवा (DANICS) कैडर के ग्रुप-ए अधिकारियों के स्थानांतरण और अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए एक राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण की स्थापना का प्रावधान है।
कोई भी अध्यादेश तब लागू किया जाता है, जब उस दौरान संसद सत्र नहीं चल रहा होता है। ऐसे में यह जरूरी होता है कि संसद उक्त अध्यादेश के स्थान पर कानून को अगला सत्र शुरू होने के छह सप्ताह के भीतर पारित करे।
विवादस्पद राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार संशोधन अध्यादेश केंद्र सरकार द्वारा 19 मई को प्रख्यापित किया गया था।
इससे एक सप्ताह पहले उच्चतम न्यायालय ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार को सेवा से जुड़े मामलों का नियंत्रण प्रदान कर दिया था हालांकि उसे पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि से जुड़े विषय नहीं दिये गए।
शीर्ष अदालत के 11 मई के फैसले से पहले दिल्ली सरकार के सभी अधिकारियों के स्थानांतरण और तैनाती उपराज्यपाल के कार्यकारी नियंत्रण में थे।
20 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के अध्यादेश को चुनौती देने वाली दिल्ली सरकार की याचिका को पांच जजों की संविधान पीठ के पास भेज दिया है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि संविधान पीठ इस बात की जांच करेगी कि क्या संसद सेवाओं पर नियंत्रण छीनने के लिए कानून बनाकर दिल्ली सरकार के लिए शासन के संवैधानिक सिद्धांतों को निरस्त कर सकती है।
23 जुलाई को आम आदमी पार्टी (आप) के सांसद राघव चड्ढा ने राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ को पत्र लिखकर केंद्र के अध्यादेश को बदलने वाले विधेयक को संसद के उच्च सदन में पेश करने की अनुमति नहीं देने का आग्रह किया था।
चड्ढा ने विधेयक को असंवैधानिक बताते हुए राज्यसभा के सभापति से भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले केंद्र को इसे वापस लेने और संविधान बचाने का निर्देश देने का आग्रह किया था।