रूस काला सागर अनाज समझौते से पीछे हट गया है। पिछले साल यूक्रेन के साथ हुए इस समझौते को तोड़ने के बाद रूस अब यूक्रेन के बंदरगाहों पर ताबड़तोड़ मिसाइल हमले कर रहा है।
रूस ने हाल ही में घोषणा की थी कि वह युद्ध के दौरान यूक्रेनी बंदरगाह से खाद्यान्न एवं उर्वरकों के निर्यात की अनुमति देने संबंधी समझौते का क्रियान्वयन रोक रहा है।
रूस के इस समझौते का असर पूरी दुनिया पर पड़ सकता है। खासतौर से एशिया में, जहां गरीब देश अपनी जरूरत का अनाज यूक्रेन से आयात करते हैं।
काला सागर अनाज समझौते से रूस के हटने से एशिया में खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ने की उम्मीद है, लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि यूक्रेन से आयात कम होने और अन्य देशों से आपूर्ति बढ़ने के कारण इसका असर फिलहाल कम रहेगा।
काला सागर समझौते के तहत, एशिया को अनाज और अन्य खाद्य पदार्थों के शिपमेंट का 46 प्रतिशत प्राप्त हुआ था। जबकि पश्चिमी यूरोप और अफ्रीका को क्रमशः 40 प्रतिशत और 12 प्रतिशत प्राप्त हुआ था।
ये आंकड़े बताते हैं कि काला सागर से होते हुए यूक्रेन का अनाज सबसे ज्यादा एशियाई देशों में आया था।
चीन ने किया सबसे ज्यादा अयात
संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, चीन ने सबसे ज्यादा अनाज अयात किया था। चीन ने 77 लाख टन अनाज काला सागर के रास्ते आयात किया था जोकि कुल आयात का लगभग एक-चौथाई है।
चीन के आयात में 56 लाख टन मक्का, 18 लाख टन सूरजमुखी बीज भोजन, 370,000 टन सूरजमुखी तेल और 340,000 टन जौ शामिल हैं।
यूक्रेन में सेंटर फॉर ग्लोबल स्टडीज स्ट्रैटेजी XXI में एशिया-प्रशांत ब्यूरो के प्रमुख ओक्साना लेस्नियाक ने अल जजीरा को बताया, “चीन का 30 प्रतिशत मक्का आयात यूक्रेन से होता है, और इसका इस्तेमाल भोजन, खाना पकाने के तेल और पशु चारे के लिए किया जाता है।”
रूस को नहीं मना पाया चीन
काला सागर अनाज सौदे का लाभार्थी और रूस का सहयोगी होने के बावजूद, चीन रूस को सौदे से न हटने के लिए राजी नहीं कर पाया है। यूक्रेन के राष्ट्रीय भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो की निगरानी समिति के प्रमुख मार्क सवचुक ने अल जजीरा को बताया, “रूस चीन के अधिकार को कमजोर कर रहा है।”
कीव स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में सेंटर फॉर फूड एंड लैंड यूज रिसर्च के एक शोधकर्ता पावलो मार्टीशेव ने कहा कि चीन सहित एशियाई देश फिलहाल अनाज डील खत्म होने से अफ्रीका जैसे क्षेत्रों की तुलना में बेहतर स्थिति में होंगे।
हालांकि अनाज सौदे के खत्म होने से अनाज और तिलहन के साथ-साथ वनस्पति तेलों की बढ़ती कीमतों के कारण एशिया में खाद्य सुरक्षा पर असर पड़ेगा। इससे क्षेत्र में खाद्य मुद्रास्फीति बढ़ सकती है। सबसे ज्यादा प्रभावित गरीब अफ्रीकी देश होंगे।
हालांकि, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि खाद्य उत्पादों की ज्यादा कमी नहीं होगी। कई अफ्रीकी देशों के विपरीत एशियाई देश आर्थिक रूप से सक्षम हैं, इसलिए उनके पास पर्याप्त खाद्य आपूर्ति होगी।
मार्टीशेव ने कहा कि चीन की अपने आयात में विविधता लाने की नीति उसकी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करेगी। चीन ने ब्राजील के साथ मक्का आयात करने के लिए 2022 में समझौता किया था। फिलहाल ब्राजील में इस साल मक्के का उत्पादन अच्छा हुआ है।
पहले से ही सतर्क हो गया था भारत
ऐसा लगता है कि भारत इस बात से पहले ही वाकिफ था। यही वजह है कि सरकार ने आगामी त्योहारों के दौरान घरेलू आपूर्ति बढ़ाने और खुदरा कीमतों को काबू में रखने के लिए बृहस्पतिवार को गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया। खाद्य मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि गैर-बासमती उसना चावल और बासमती चावल की निर्यात नीति में कोई बदलाव नहीं होगा।
कुल निर्यात में दोनों किस्मों का हिस्सा बड़ा है। देश से निर्यात होने वाले कुल चावल में गैर-बासमती सफेद चावल की हिस्सेदारी लगभग 25 प्रतिशत है।
विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) की एक अधिसूचना के अनुसार, ‘‘गैर-बासमती सफेद चावल (अर्ध-मिल्ड या पूरी तरह से मिल्ड चावल, चाहे पॉलिश किया हुआ हो या नहीं) की निर्यात नीति को मुक्त से प्रतिबंधित कर दिया गया है।’’
मंत्रालय ने कहा, ‘‘उचित कीमतों पर पर्याप्त घरेलू उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए गैर बासमती सफेद चावल की निर्यात नीति में संशोधन किया गया है।’’
इस कदम का उद्देश्य आगामी त्योहारी मौसम में कम कीमत और पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करना है।